आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
मनोरमा नदी का प्राकट्य
राजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ से पहले मखौड़ा में कोई नदी नहीं थी। शृंगी ऋषि ने सरस्वती का आह्वान मनोरामा के नाम से किया था। नचिकेता पुराण में कहा गया है कि,
‘अन्य क्षेत्रे कृतं पापं, काशी क्षेत्रे विनश्यति। काशी क्षेत्रे कृतं पापं, प्रयाग क्षेत्रे विनश्यति। प्रयाग क्षेत्रे कृतं पापं, मनोरमा विनश्यति। मनोरमा कृतं पापं, ब्रजलेपो भविष्यति।।’
अर्थात, किसी भी क्षेत्र में किया गया पाप काशी स्नान से नष्ट हो जाता है। काशी में किया पाप प्रयागराज में गंगा स्नान से नष्ट हो जाता है। प्रयाग में किया पाप मनोरमा में स्नान से नष्ट हो जाता है । मनोरमा में किया पाप बज्र के समान घातक होता है। वह कभी भी नष्ट नहीं होता है। पुराणों में इस नदी को सरस्वती की सातवीं धारा भी कहा गया है।
राम जन्म का आधार
मखौडा धाम बस्ती जिले में हर्रैया तहसील के सबसे प्राचीन स्थानों में से एक है । यह अयोध्या से दूर नहीं है। यहां राजा दशरथ ने महर्षि वशिष्ठ की सलाह पर ऋषि श्रिंग की मदद से पुत्र कामेष्टी यज्ञ किया था। तब यज्ञ कुंड से बाहर खीर का वर्तन निकला था। महान ऋषिश्रिंग ने राजा दशरथ को खीर के प्रसादी वाला बर्तन दिया था। जिसे वह अपनी रानियों के बीच वितरित किया था । कौशल्या ने आधा खीर खा लिया, सुमित्रा ने इसका एक चौथाई खा लिया। कैकेयी ने कुछ खीर खा लिया और शेष को सुमित्रा को वापस भेज दिया जिसने खीर को दूसरी बार खाया। इस प्रकार खीर का प्रसाद ग्रहण करने के बाद राजकुमारों की कामना की गई। कौशल्या ने राम को जन्म देने वाले सबसे बड़े हिस्से का उपभोग किया था। कैकेयी ने शेष भाग खाकर भरत को जन्म दिया। सुमित्रा ने उक्त दोनों से छोटा होने के कारण दोनो रानियों के हिस्से को बांट कर दिए जाने से लक्ष्मण और शत्रुघ्न दो पुत्रों को जन्म दिया था ।
उसके बाद से वहां प्रतिवर्ष वैशाख महीने में अक्षय तृतीया से जानकी नवमी तक पुत्रेष्टि यज्ञ की परंपरा आज भी जारी है। यहां दशरथ महल तथा हनुमान गढ़ी अयोध्या के दिव्य मंदिर है। जहां भारी संख्या में सन्त महात्मा रहते हैं और भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते रहते हैं।
यहां राम सीता लक्ष्मण हनुमान तथा शिव परिवार की सुन्दर मूर्तियां अनायास भक्तों का मन को मोह लेती है।
इस मखौड़ा तीर्थ में जब से राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था तब से आज तक चैत मास की पूर्णिमा का मेला लगता है। इसमें हजारों लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस दिन यहां लिट्टी चोखा खाने का महत्त्व है।
स्वामी नारायण घनश्याम के धर्म पिता यहां सबको खाना खिलाए थे। इस मेले में पृथ्वी का भार स्वरुप कुछ आसुरी शक्तियां भी आती हैं और पहले स्नान करने के होड़ में आपस में लड़ कर अपना अस्तित्व समाप्त तक कर देते हैं।
मखौड़ा घनश्याम से अछूता नहीं
राम नवमी के दिन अवतारित और कृष्ण लीला को अपना अभीष्ट मानने वाले बाल प्रभु घनश्याम महाराज मखौड़ा की महिमा से अछूते नहीं थे। विश्व स्तरीय संस्कृति और पावन तीर्थ के प्रेरणा स्त्रोत इस स्थल पर घनश्याम अपने माता पिता और परिवार के साथ अनेक बार पदार्पण कर अपनी लीला दिखाए हैं। आज भी स्वामी नारायण पंथ के अनुयाई भारी संख्या में इस प्रसादी स्थल का दर्शन करने आते रहते हैं। यह स्थान घनश्याम महाराज की जन्म भूमि छपिया से कुछ ही किमी की दूरी पर ही स्थित है।
सोने की तोप को गाड़ी पर लादना
एक बार नदी के किनारे दबी हुई सोने की तोप मिली थी। अयोध्या के तत्कालीन राजा दर्शन सिंह ने इस तोप को अयोध्या नगरी में लाने का आदेश दिए थे। उन्होने यह भी आदेश दिया था कि तोप ना लाने पर मृत्यु दंड दिया गया जायेगा। सिपाही लोग बहुत प्रयत्न किए कि तोप उठ जाए। पर वह टस से मस तक नहीं कर सके। वे लोग अपने साथ बड़ी लोहे की गाड़ी और दस जोड़ी बैल भी लेकर आए थे। पचास व्यक्ति उसे उठाने का बार बार उद्यम कर रहे थे।
इसे देखकर घनश्याम ने अपने भाई से पूछा,”भाई साहब ये लोग मिल कर क्या काम कर रहे हैं?” बड़े भाई ने सिपाहियों से पूछा। सिपाहियों ने उत्तर दिया,”हमे अयोध्या के राजा ने तोप लाने के लिए भेजा है। तोप ना ले जानें पर एक क्या दण्ड मिलेगा यह भी सिपाहियों ने बताया।
इस बात को सुन कर घनश्याम महाराज को दया और आ गई। घनश्याम महाराज ने सिपाहियों से कहा,”आप लोग सभी दूर हट जाएं। हम लोग तोप को गाड़ी में रख देंगे।”
सिपाही उतर देते हैं, “हम पचास स्वस्थ आदमी तोप को गाड़ी में नहीं रख पा रहे हैं तो आप बालक कैसे इसे रख पाओगे?’
इतना सुनने पर घनश्याम ने सभी को राम जी भगवान के स्वरुप का दर्शन कराया और एक हाथ से तोप को गाड़ी में रख दिया। सभी सिपाही कृतज्ञता जताते हुए घनश्याम महाराज के चरणों में गिर गए।
लेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)