
•भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से हम विश्व गुरु बन सकते है – प्रो. विकास शर्मा
•सांस्कृतिक तौर पर हम गुलाम नहीं रहे – श्री श्रीप्रकाश पाण्डेय
बस्ती। महिला महाविद्यालय में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुदानित कल्चरल क्लब ‘स्पृहा’, यूजीसी-एमएमटीडीसी-एचआरडीसी जोधपुर (राजस्थान) तथा प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारतीय ज्ञान परंपरा: रामायण और रामचरितमानस के विशेष संदर्भ में” का समापन गुरुवार को हुआ।
समापन सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि श्रीप्रकाश पाण्डेय (समाज कल्याण अधिकारी), मुख्य वक्ता प्रो. विकास शर्मा (विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ), वक्ता डॉ. ज्योति शुक्ला (सहायक संपादक, भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली) एवं महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. सुनीता तिवारी द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
प्राचार्या प्रो. सुनीता तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि वर्तमान परिदृश्य में भारतीय ज्ञान परंपरा, विशेषतः रामायण और रामचरितमानस का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित भी किया।
मुख्य वक्ता प्रो. विकास शर्मा ने भारतीय ज्ञान परंपरा को ‘ज्ञान का समुद्र’ बताते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में पारंपरिक एवं आधुनिक ज्ञान के संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा का वैश्विक महत्व अतीत से वर्तमान तक प्रासंगिक बना हुआ है।
मुख्य अतिथि श्रीप्रकाश पाण्डेय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में रामायण और रामचरितमानस को भारत की आत्मा बताते हुए कहा कि मानस हमें जीवन की समस्याओं का समाधान सहजता से प्रस्तुत करता है।
तृतीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता श्रीमती सरिता कुमारी (सहायक आचार्य, अंग्रेजी विभाग, एपीएन पीजी कॉलेज, बस्ती) ने की। मुख्य वक्ता डॉ. रतना सिंह (सहायक आचार्य, एमएसडीएस विश्वविद्यालय, फर्रुखाबाद) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता पर वक्तव्य दिया।
द्वितीय दिवस के तकनीकी सत्र में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से कुल 30 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
आभार प्रदर्शन डॉ. रघुवर पाण्डेय ने किया एवं मंच संचालन डॉ. सुधा त्रिपाठी ने किया। संगोष्ठी की संयोजक डॉ. रुचि श्रीवास्तव, डॉ. नूतन यादव एवं डॉ. सुधा त्रिपाठी रहीं।
इस अवसर पर डॉ. सीमा सिंह, डॉ. रघुनाथ चौधरी, डॉ. बृजेश दूबे, डॉ. कंचन त्रिपाठी, डॉ. सौम्या पाल, डॉ. उपेंद्र शुक्ला, डॉ. वीना सिंह, डॉ. स्मिता सिंह, डॉ. रोहित सिंह, डॉ. सुहासिनी सिंह, श्रीमती नेहा परवीन, डॉ. प्रियंका पांडेय, डॉ. कमलेश पांडेय, डॉ. दिलीप त्रिपाठी, डॉ. पूजा गुप्ता, नेहा श्रीवास्तव, मोनी पांडेय, गिरिजानंद राव, सूर्या उपाध्याय, पूनम यादव, अनुराग शुक्ला सहित विभिन्न महाविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्राएं उपस्थित रहीं।
यह संगोष्ठी भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ने और ज्ञान परंपरा को पुनः स्थापित करने की दिशा में एक प्रभावी पहल सिद्ध हुई।