
अयोध्या। जहां भगवान राम के नाम पर न्याय, करुणा और धर्म की बातें होती हैं वहीं एक बेजुबान जानवर की पीड़ा और प्रशासन की उपेक्षा ने पूरे सिस्टम की असंवेदनशीलता को उजागर कर दिया। देवकाली-वज़ीरगंज क्षेत्र में गंभीर रूप से घायल खच्चर की जान तब जाकर बच सकी, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप किया। लेकिन यह घटना सिर्फ एक जानवर की नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही, नगर निगम की निष्क्रियता और उत्तर प्रदेश की सूचना व्यवस्था की विफलता की कहानी बन गई।
पशु अधिकार कार्यकर्ता प्रज्ञा गुप्ता ने 27 जून 2025 को जिलाधिकारी अयोध्या को एक आवेदन सौंपा, जिसमें घायल और तड़पते खच्चर की हालत का उल्लेख था। उसके बाद भी 10 जुलाई तक कोई भी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई।
प्रज्ञा गुप्ता द्वारा 22 से अधिक आरटीआई दायर की गईं, जिनमें से सिर्फ दो का जवाब मिला, बाक़ी सभी लंबित हैं। ’ 20 से अधिक आईजीआरएस शिकायतें की गईं, जिनका जवाब या तो घुमा-फिराकर दिया गया या फिर दूसरे विभागों पर डाल दिया गया। यह रवैया भारतीय नागरिक के सूचना के अधिकार और संविधान द्वारा तय की गई पारदर्शिता की सीधी अवहेलना है।
सीवीओ डॉ. इंद्रदेव महारः “इलाज करवा देंगे, लेकिन रखने की ज़िम्मेदारी नहीं है।” ’ 10 जुलाई को अपर नगर आयुक्त नगेंद्र नाथ के द्वारा जगह प्रदान करने की बात कही गई।
लेकिन फिर उन्हीं के कर्मचारी राकेश वर्मा द्वारा ये बोलना की जगह कहां है। ’नगर आयुक्त जयेंद्र कुमार (11 जुलाई को प्रज्ञा गुप्ता के द्वारा व्यक्तिगत भेंट) आप इलाज कर रही हैं तो करते रहिए। क्या ये नगर निगम अधिनियम में लिखा है?”
जब इन्हें एडब्लूबीआई की 2018 और 2020 की एडवाइजरी व अनुच्छेद 243-डब्लू दिखाया गया, तब भी कोई ठोस उत्तर नहीं मिला।
ट्विटर पर लगातार नगर निगम अयोध्या, एसपीसीए, मुख्यमंत्री कार्यालय और डीएम को टैग किया गया। 1076 हेल्पलाइन और गोरखपुर स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय में कॉल किया गया। ’ फिर भी ना कोई कॉल आया, ना कोई राहत भेजी गई। जब सारी सरकारी मशीनरी चुप रही, तब मेनका गांधी जी से संपर्क किया गया। केवल 5 मिनट में, उन्होंने एसपीसीए सुलतानपुर को निर्देशित किया और घायल खच्चर को तुरंत वहाँ आश्रय व इलाज दिलाने की व्यवस्था करवाई।