मुंबई। 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट मामले में सोमवार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी 11 दोषियों को निर्दोष करार दिया और उन्हें बरी कर दिया है। यह फैसला जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस एस. जी. चांडक की खंडपीठ ने सुनाया। इस मामले में कुल 12 आरोपियों को पहले निचली अदालत ने दोषी ठहराया था, जिनमें से 5 को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा दी गई थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान 11 दोषियों को बरी कर दिया, जबकि एक आरोपी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी।
सूत्रों के अनुसार, इस साल जनवरी में इस प्रकरण की अंतिम सुनवाई पूरी हुई थी, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था। दोषियों ने येरवडा, नाशिक, अमरावती और नागपूर जेलों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
2006 में हुए इस भीषण बम धमाके में मुंबई की लोकल ट्रेनों के सात स्थानों पर विस्फोट हुए थे, जिसमें 189 लोगों की जान गई थी और 824 लोग घायल हुए थे। इस मामले में 2015 में स्पेशल कोर्ट ने कुल 12 आरोपियों को दोषी करार दिया था, जिनमें से 5 को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जिन लोगों को फांसी की सजा दी गई थी, उनमें मोहम्मद फैसल शेख, एहतशाम सिद्धीकी, नवेद हुसैन खान, आसिफ खान और कमल अंसारी शामिल थे।
हालांकि, कमल अंसारी नाम के आरोपी की को कोविड-19 के कारण 2022 में जेल में ही मृत्यु हो गई थी।
बचाव पक्ष ने आरोप लगाया था कि रूष्टह्रष्ट्र अधिनियम के तहत दर्ज की गई पाक्षिकीय बातों (ष्शठ्ठद्घद्गह्यह्यद्बशठ्ठह्य) ‘जबरदस्ती’ और ‘टॉर्चर’ से प्राप्त की गईं, और इसलिए उन्हें अवैध मानते हुए खारिज किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, राज्य ने यह साबित करने की कोशिश की थी कि यह मामला ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ (किसी भी तरह से गंभीर और असाधारण) है, और दोषियों को सजा देना न्यायोचित है।
यह फैसला इस मामले में एक नई दिशा दिखाता है और कई सवालों को जन्म देता है, विशेष रूप से आतंकवाद से संबंधित मामलों में न्यायिक प्रक्रिया और साक्ष्यों के उपयोग को लेकर।
