बस्ती। श्रावण मास का पावन समय भक्तों के लिए आस्था, तप और शिव उपासना का महोत्सव लेकर आता है। भगवान शिव को समर्पित यह मास भक्तों के लिए मोक्ष, शांति और कल्याण का प्रतीक माना जाता है। इसी क्रम में बस्ती जनपद के प्रसिद्ध बाबा मुकतेश्वर नाथ मंदिर (रामनगर घाट, महसो) में इन दिनों श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। श्रद्धालु लगातार दर्शन, जलाभिषेक व रुद्राभिषेक कर रहे हैं। भक्तों के मन में एक ही भाव है “हर हर महादेव!”

मुख्य पुजारी छैल बिहारी गिरी ने बताया कि शिव ही सनातन हैं(— न आदि हैं, न अंत)। उनके बिना विश्व कल्याण की कामना भी नहीं की सकती। शिव ही इस धरा के पालक हैं और शिव ही विनाशक भी। ब्रह्माजी को सृष्टि का रचयिता, भगवान विष्णु को पालक और भगवान शिव को संहारक माना गया है। लेकिन, मूलतः शक्ति तो एक ही है, जो तीन अलग-अलग कार्य करती है। वह मूल अलग-अलग रूपों में शक्ति शिव ही हैं।
मुख्य पुजारी छैल बिहारी गिरी ने बताया कि भगवान शिव न केवल संहारक हैं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के मूल कारण भी वही हैं। ‘स्कंद पुराण’ के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश; तीनों की उत्पत्ति भी माहेश्वर अंश से हुई है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय; तीनों ही शिव की लीला हैं। स्कंद पुराण में वर्णित है कि जब एक कल्प समाप्त हुआ, सृष्टि जल में विलीन हो गई, और सब कुछ नष्ट हो गया, तब केवल शिव ही शेष बचे थे। अंधकार और शून्यता में भी वे ज्योति रूप में विराजमान रहे।
ज्योतिर्लिंग: शिव का ब्रह्मांडीय स्वरूप:- उन्होंने कहा कि शिवलिंग ही ब्रह्मांड का प्रतीक है और उसकी जलहरी संपूर्ण ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। जो दर्शाती है कि यह सम्पूर्ण सृष्टि शिव से ही उत्पन्न, स्थित और लीन होती है। शिव का स्वरूप साकार भी है और निराकार भी, यही कारण है कि शिव को परम तत्व कहा गया है।
शिव: विद्या और अविद्या के रूप में- भगवान शिव की शक्ति दो रूपों में प्रकट होती है विद्या और अविद्या। विद्या वह शक्ति है जो परमात्मा के आनंदमय स्वरूप को प्रकट करती है। वहीं अविद्या वह है जो माया और भ्रम की रचना करती है। यह दोनों ही शक्तियाँ सृष्टि की संतुलन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं, और इनका मूल स्रोत शिव ही हैं।
शिवलिंग की महत्ता: पुजारी जी ने बताया कि श्रावण मास में शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध और धतूरा अर्पण करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इस माह में की गई पूजा न केवल सांसारिक कष्टों का निवारण करती है, बल्कि आत्मिक शुद्धि भी प्रदान करती है।
शिव केवल एक धार्मिक अवधारणा नहीं, बल्कि सृष्टि, स्थिति और प्रलय के मूल स्तम्भ हैं। उनका अस्तित्व हर अणु में है, हर तत्व में है — शिव ही सत्य हैं, शिव ही ब्रह्म हैं।
