

– संगम त्रिपाठी, संस्थापक, प्रेरणा हिंदी प्रचारिणी सभा, जबलपुर (म.प्र.)
विचार मंथन: आज हिंदी की वर्तमान दशा चिंतन का विषय है। दुनिया का एकमात्र लोकतांत्रिक देश जिसकी अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है वह भारत ही है। दुनिया में बहुत से देश है जहां कई भाषा व बोली है उसके बावजूद उनकी राष्ट्रभाषा है।
हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं और सभी भाषाएं ज्ञान देती है। आज हिंदी का विरोध अपने देश में हो रहा है वैसा तो विश्व के किसी देश में नहीं है जो कि सचमुच चिंतन का विषय है। हम अपनी भाषा को खोते जा रहे हैं और विश्व पटल पर स्थापित करने की बात बड़े गर्व से कहते हैं। पता नहीं हम अपने ही देश में अपनी भाषा को उसका वास्तविक सम्मान कब दिला पाएंगे।
आप सभी साहित्य मनीषी साहित्यकार पत्रकार कलमकार व हिंदी प्रेमियों को इस दिशा में सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है और इस विषय को अपने – अपने प्रयासों से सत्ता के गलियारों तक अभिव्यक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है तभी अपनी भाषा अपनी संस्कृति बचेगी।