
•न तबादला नीति लागू होती है, न दिखती है जवाबदेही।
के.के. मिश्रा, संवाददाता।
संत कबीर नगर। विकास भवन, संतकबीरनगर में लंबे समय से चर्चा में रहे एक बाबू पर “ख़बर का असर” तो दिखा, लेकिन परिणाम उतने प्रभावी नहीं रहे जितनी अपेक्षा थी। उर्दू अनुवादक व नाजीर पद पर बीते 12-13 वर्षों से जमे अशफाक हुसैन को एक बार फिर महज पटल परिवर्तन कर छोड़ दिया गया।
धर्मेंद्र पाल को सोशल ऑडिट (मनरेगा सेल) का प्रभार सौंपा गया है, परंतु अशफाक हुसैन अब भी नाजीर पद पर अडिग बने हुए हैं। अधिकारियों का तर्क है कि जब तक कोई “उपयुक्त विकल्प” नहीं मिलता, तब तक अशफाक बाबू इसी पद पर बने रहेंगे।
क्या तबादला नीति सिर्फ कुछ के लिए?
शासन की नीति के अनुसार, प्रत्येक सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को तीन वर्षों के कार्यकाल के बाद पटल परिवर्तन या स्थानांतरण किया जाना चाहिए। मगर अशफाक हुसैन जैसे बाबुओं पर यह नीति लागू नहीं होती! आखिर क्यों?
सूत्रों के अनुसार, विकास भवन में माननीय विधायकों की निधियों से जुड़े महत्वपूर्ण कार्यों के पटल पर अब भी अशफाक बाबू ही प्रभावी हैं। उनके ही इर्द-गिर्द कार्यों की मलाई काटने का सिलसिला वर्षों से जारी है।
विवादित इतिहास, फिर भी संरक्षण जारी
बता दें कि बसपा शासनकाल में विधायक मोहम्मद ताबिश खान द्वारा की गई शिकायतों के बाद अशफाक को हटाया गया था। लेकिन सपा शासनकाल में पुनः बहाल कर दिया गया और तब से लेकर आज तक वे उसी पद पर बने हुए हैं।
आश्चर्यजनक बात यह है कि उन्हें कभी अपनी कुर्सी पर कार्य करते नहीं देखा गया। बल्कि वे कार्यालय परिसर में “टहल बाज़ी” में व्यस्त रहते हैं और ब्लॉक स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों से “सामंजस्य” स्थापित करने में माहिर माने जाते हैं।
सहयोगी चेला भी उतना ही प्रभावशाली
उनका एक चहेता सहयोगी, जो विकास भवन में चपरासी के पद पर 15 वर्षों से नियुक्त है, उसका भी प्रमोशन हो चुका है। बावजूद इसके, वह अब भी उसी परिसर में अटैच बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि उसकी स्थायित्व भी अशफाक बाबू की मेहरबानी का ही परिणाम है।
ट्रांसफर में पक्षपात के आरोप
हाल में हुए तबादलों में मिराज-उल-हक को पौली और हैसर ब्लॉक की जिम्मेदारी दी गई, जबकि तेजतर्रार अधिकारी ऋषि सिंह को जिला कार्यालय से अटैच कर दिया गया। आरोप है कि ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी वही होता है, जो अशफाक बाबू की मर्जी होती है।
इनकी कार्यशैली में अधिकारियों को भ्रमित करना, महत्वपूर्ण बजट से जुड़े कार्यों में “रिसोर्स हेराफेरी” कराना और मलाईदार पदों पर स्थायित्व बनाए रखना मुख्य रूप से शामिल है।
प्रशासन मौन, नीति हाशिये पर
जब इस पूरे मामले पर सवाल उठते हैं, तो अधिकारी वर्ग जवाबदेही से बचता नज़र आता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे विकास भवन “अंधेर नगरी, चौपट राजा” की परिभाषा को जीवंत कर रहा हो। अब देखना यह है कि क्या जिला प्रशासन तबादला नीति का पालन करते हुए अशफाक हुसैन को अन्यत्र स्थानांतरित करेगा या फिर रसूख के बल पर वे उसी तरह कुर्सी से चिपके रहेंगे। किसी ने ठीक ही कहा है “साहब मेहरबान, तो बाबू भी पहलवान।
