
— के.के. मिश्रा, संवाददाता।
संत कबीर नगर। खबर का असर होते ही विकास भवन में लंबे समय से उर्दू अनुवादक/नाजीर पद पर जमे बाबू अशफाक हुसैन का पटल परिवर्तन किया गया। धर्मेंद्र पाल को सोशल ऑडिट एवं मनरेगा सेल का प्रभार सौंपा गया। हालांकि, आश्चर्य की बात यह है कि अशफाक हुसैन अभी भी नाजीर पद पर बने हुए हैं।
सूत्रों के अनुसार, विकास भवन में नाजीर व तीनों विधानसभा क्षेत्रों के माननीय सदस्यों की निधि से संबंधित पटल तभी बदले जाएंगे, जब “सुयोग्य कर्मचारी” उपलब्ध हो सके। अधिकारियों का कहना है कि इतने योग्य कर्मचारी पूरे जनपद में मिलना कठिन है, इसलिए तब तक अशफाक हुसैन अपने पद पर बने रहेंगे। यह स्थिति शासन की मंशा और तबादला नीति पर प्रश्नचिह्न लगाती है, जिसमें स्पष्ट है कि प्रत्येक अधिकारी-कर्मचारी का तीन वर्ष के बाद पटल परिवर्तन होना चाहिए।
बसपा शासनकाल में विधायक मोहम्मद ताबिश खान द्वारा शिकायत पर अशफाक हुसैन को पद से हटाया गया था। लेकिन सपा शासन की वापसी पर उन्हें फिर से बुलाकर उसी पद पर तैनात कर दिया गया। तब से लेकर अब तक वह 12-13 वर्षों से अपने पद पर जमे हुए हैं।
अधिकारियों और कर्मचारियों के अनुसार, अशफाक हुसैन शायद ही कभी अपनी कुर्सी पर बैठकर कार्य करते दिखाई देते हैं। इसके बजाय, ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच तालमेल बैठाने, सुविधा शुल्क वसूलने और “समझौता” कराने में अधिक समय बिताते हैं। बताया जाता है कि उनका एक “चेला” भी है, जो 15 वर्षों से चपरासी के पद पर रहते हुए हमेशा विकास भवन में ही अटैच है, जबकि उसका प्रमोशन हो चुका है।
हाल ही में तबादलों का दौर शुरू हुआ। मुख्य विकास अधिकारी द्वारा 29 जुलाई 2025 को आदेश जारी करते हुए पटल परिवर्तन किया गया, लेकिन अशफाक हुसैन ने नए प्रभारी धर्मेंद्र पाल को कार्यभार नहीं सौंपा। अधिकारियों ने इस संबंध में कोई कार्रवाई या पूछताछ नहीं की।
सूत्र बताते हैं कि मनरेगा में ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर निधि के आवंटन तक, कई महत्वपूर्ण कार्यों में अशफाक हुसैन का प्रभाव है। वे अपने रसूख और अधिकारियों के साथ मजबूत तालमेल के कारण तबादला नीति से अप्रभावित बने हुए हैं।
अब सवाल यह है कि जिला प्रशासन तबादला नीति का पालन करते हुए अशफाक हुसैन का स्थानांतरण करेगा, या फिर नीति को दरकिनार कर उन्हें उसी पद पर बनाए रखेगा। जैसा कि कहा जाता है—
“साहब मेहरबान तो बाबू भी पहलवान।”