
सुल्तानपुर/मुंबई। भारतीय सिनेमा के महान गीतकार और शायर मजरूह सुल्तानपुरी की आज 106वीं जयंती है। हिंदी फिल्म उद्योग को पाँच दशकों तक अपनी शायरी और गीतों से सजाने वाले मजरूह का जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ था और 24 मई 2000 को मुंबई में उनका निधन हुआ।
मजरूह सुल्तानपुरी का असली नाम असरार उल हसन खान था। पेशे से वह हकीम थे, लेकिन शायरी उनकी पहचान बनी। 1945 में मुंबई में आयोजित मुशायरों में भाग लेने के बाद फिल्म निर्माता ए.आर. कारदार की नजर उन पर पड़ी। इसके बाद उन्हें फिल्म शाहजहाँ (1946) के लिए गीत लिखने का मौका मिला। उनका पहला गाना “जब दिल ही टूट गया“ के.एल. सहगल ने गाया था, जो आज भी अमर है। फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारः फिल्म दोस्ती के गीत “चाहूंगा मैं तुझे“ के लिए उन्हें फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार मिला।
दादा साहब फाल्के पुरस्कारः मजरूह सुल्तानपुरी दादा साहब फाल्के पुरस्कार पाने वाले पहले गीतकार बने। यह सम्मान उन्हें 1993 में दिया गया, जो हिंदी सिनेमा का सर्वोच्च पुरस्कार है। प्रगतिशील लेखक आंदोलनः 1950 और 1960 के दशक में वे भारतीय सिनेमा की संगीत क्रांति का अहम हिस्सा रहे और प्रगतिशील लेखक आंदोलन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। पाँच दशकों के लंबे करियर में उन्होंने 250 से अधिक फिल्मों के लिए 2000 से अधिक गीत लिखे।
इनमें “जब दिल ही टूट गया“, “चाहूंगा मैं तुझे“ और “पहला नशा“ जैसे सदाबहार गीत शामिल हैं। उनकी लेखनी आज भी पीढ़ियों को मोह लेती है और श्रोताओं के दिलों में बसती है। 80 वर्ष की आयु में 24 मई 2000 को मजरूह सुल्तानपुरी ने अंतिम सांस ली, लेकिन उनकी शायरी और गीत अमर हो गए। उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है और उनके योगदान को याद करता है।