
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किरायेदारी विवादों को लेकर एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि मकान मालिक को अपनी संपत्ति पर पूर्ण अधिकार है और वह अपनी आवश्यकता और सुविधा के अनुसार इसका उपयोग कर सकता है।
कोर्ट का मुख्य निर्णय:
मकान मालिक अपनी संपत्ति का सर्वोच्च मध्यस्थ है।किराएदार मकान मालिक के संपत्ति उपयोग में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
किराएदार मकान मालिक को यह निर्देश नहीं दे सकता कि प्रॉपर्टी का उपयोग कैसे हो।
यह फैसला एक 80 वर्षीय पूर्व सैनिक और उनकी पत्नी की याचिका पर आया, जिन्होंने अपने किराएदार से घर खाली करने की मांग की थी। मामला इस वजह से कोर्ट तक पहुंचा क्योंकि किराएदार ने 1989 से प्रॉपर्टी में रह रहे होने के बावजूद, 2003 में तय अवधि समाप्त होने के बाद भी घर खाली करने से मना कर दिया था। मकान मालिक ने बिगड़ती सेहत के कारण घर में नर्स को रखने की आवश्यकता जताई, लेकिन किराएदार ने प्रॉपर्टी में एडजस्ट करने की बात कहकर इंकार कर दिया।
लोअर कोर्ट ने पहले किराएदार के पक्ष में फैसला दिया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया कि मकान मालिक को यह तय करने का अधिकार है कि उसकी संपत्ति का उपयोग कैसे होगा।
हाईकोर्ट का आदेश:
मकान मालिक अपनी संपत्ति का उपयोग अपनी सुविधा और आवश्यकता के अनुसार करने के लिए स्वतंत्र है।
किराएदार को 6 महीने के भीतर प्रॉपर्टी खाली करने का निर्देश दिया गया है।
यह कोर्ट का कार्य नहीं है कि वह यह तय करे कि मकान मालिक अपनी प्रॉपर्टी का उपयोग कैसे करे।
यह फैसला मकान मालिक और किराएदारों के बीच चल रहे सैकड़ों विवादों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में मकान मालिक के अधिकारों को सर्वोपरि बताते हुए किरायेदारी संबंधी कानूनी विवादों की दिशा स्पष्ट की है।
विशेषज्ञों की राय:
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला प्रॉपर्टी कानून में एक मील का पत्थर साबित होगा और भविष्य में ऐसे मामलों को तेजी से सुलझाने में मदद करेगा।