
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आनंद कारज (सिख विवाह) के पंजीकरण को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया है कि वे चार महीने के भीतर विवाह पंजीकरण नियम अधिसूचित करें। अदालत ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष ढांचे में नागरिक समानता सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है और जब कानून आनंद कारज को वैध विवाह मान्यता देता है, तो उसका पंजीकरण भी अन्य विवाहों की तरह होना चाहिए।
आधा वादा नहीं, पूरा पालन जरूरी
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि जब तक पंजीकरण की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक यह वादा अधूरा ही रहेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य को किसी नागरिक की आस्था को न विशेषाधिकार में बदलना चाहिए और न ही बाधा में।
बता दें कि सिख परंपरा के आनंद कारज विवाह को 1909 के अधिनियम से मान्यता दी गई थी। 2012 में संशोधन के जरिए धारा 6 जोड़ी गई, जिसमें राज्यों को विवाहों के पंजीकरण के लिए नियम बनाने और विवाह रजिस्टर बनाए रखने का दायित्व सौंपा गया। हालांकि कई राज्यों ने नियम अधिसूचित कर दिए हैं, लेकिन कई अब भी पीछे हैं।
अदालत के निर्देश
तुरंत प्रभाव से: सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रचलित विवाह पंजीकरण ढांचे के तहत आनंद कारज विवाहों का पंजीकरण स्वीकार करें। केंद्र सरकार दो महीने में उन राज्यों के मॉडल नियम साझा करे जिन्होंने पहले ही नियम बनाए हैं। केंद्र छह महीने के भीतर सभी राज्यों के अनुपालन पर एक समेकित स्थिति रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करे।
गोवा को दिए गए विशेष निर्देशों में, पीठ ने कहा कि सभी नागरिक पंजीकरण कार्यालय मौजूदा ढांचे के तहत आनंद कारज द्वारा संपन्न विवाहों के पंजीकरण के लिए आवेदनों को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त करें और उन पर कार्रवाई करें। केंद्र को चार महीने के भीतर गोवा, दमन और दीव (प्रशासन) अधिनियम, 1962 की धारा 6 के तहत एक उपयुक्त अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया गया। इस विस्तार के बाद, गोवा को चार महीने के भीतर धारा 6 के तहत नियम अधिसूचित करने का आदेश दिया गया।
इसमें कहा गया है कि अंतरिम उपाय के रूप में सिक्किम यह सुनिश्चित करेगा कि सभी पंजीकरण प्राधिकारी, सिक्किम में विवाह के एक प्रारूप के पंजीकरण और अनुष्ठान के लिए मौजूदा नियमों (1963) के तहत आनंद कारज द्वारा संपन्न विवाहों के पंजीकरण के लिए आवेदन प्राप्त करें और बिना किसी भेदभाव के उन पर कार्रवाई करें।
पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि वह संविधान के अनुच्छेद 371एफ(एन) के तहत 1909 के अधिनियम को सिक्किम तक विस्तारित करने के प्रस्ताव पर विचार करे और उसे चार महीने के भीतर सक्षम प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करे, जिसमें आवश्यक प्रतिबंध या संशोधन शामिल हों।
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