बस्ती। आर्य समाज और आर्य वीर दल पूर्वी उत्तर प्रदेश द्वारा दिनांक 21 से 27 दिसम्बर तक आयोजित वीरोत्सव सप्ताह के अंतर्गत स्वामी दयानन्द विद्यालय सुरतीहट्टा बस्ती और आर्य समाज गांधी नगर में स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान दिवस मनाया गया जिसमें बच्चों, शिक्षकों, सदस्यों और पदाधिकारियों द्वारा वैदिक यज्ञ कर अमर हुतात्मा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई।



इस अवसर पर भाषण प्रतियोगिता आयोजित की गई और सफल बच्चो को शिक्षकों द्वारा सम्मानित किया गया। इस अवसर पर यज्ञाचार्य देवव्रत आर्य ने विधि पूर्वक यज्ञ सम्पन्न कराया।
इस अवसर पर ओम प्रकाश आर्य प्रधान आर्य समाज नई बाजार बस्ती ने बताया कि स्वामी श्रद्धानन्द भारत के शिक्षाविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, तथा आर्य समाज के प्रखर, प्रबल, अद्वितीय संन्यासी थे जिन्होंने स्वामी दयानंद की शिक्षाओ का प्रसार किया। वे भारत के उन महान राष्ट्रभक्त सन्यासियो में अग्रणी थे जिन्होंने अपना जीवन स्वाधीनता, स्वराज्य, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित कर दिया । आचार्य देवव्रत आर्य ने बताया कि एडवोकेट मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानंद तक की जीवन यात्रा प्रत्येक व्यक्ति के लिए बेहद प्रेरणादायी है। आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है।
स्वामी श्रद्धानंद की स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई एक भेंट और पत्नी के पतिव्रत धर्म तथा निश्छल निष्कपट प्रेम व सेवा भाव ने उनके जीवन को देश के लिए प्रेरक बना दिया। काशी विश्वनाथ मंदिर के कपाट सिर्फ रीवा की रानी के लिए खोलने और साधारण जनता के लिए बंद किए जाने व एक पादरी के व्यभिचार का दृश्य देख मुंशीराम का धर्म से विश्वास उठ गया और वह बुरी संगत में पड़ गए।
किन्तु, स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ बरेली में हुए सत्संग ने ना सिर्फ उन्हें जीवन का अनमोल आनंद दिया, अपितु उन्होंने उसे सम्पूर्ण संसार को खुले मन से वितरित भी किया।
समाज के प्रबल विरोध के बावजूद, उन्होंने, स्त्री शिक्षा के लिए अग्रणी भूमिका निभाई। ईसाई मिशनरी विद्यालय में पढ़ने वाली स्वयं की बेटी अमृत कला को जब उन्होंने ‘ईसा-ईसा बोल, तेरा क्या लगेगा मोल. ईसा मेरा राम रमैया, ईसा मेरा कृष्ण कन्हैया‘ गाते हुए सुना तो वे हतप्रभ रह गए। वैदिक संस्कारों की पुनर्स्थापना हेतु उन्होंने घर घर जाकर चंदा इकट्ठा कर गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय की स्थापना हरिद्वार में कर अपने बेटे हरीश्चंद्र और इंद्र को सबसे पहले प्रवेश करवाया।
प्रधानाध्यापक आदित्य नारायण ने कहा कि प्रबल सामाजिक विरोधों के बावजूद अपनी बेटी अमृत कला, बेटे हरिश्चद्र व इंद्र का विवाह जात-पात के समस्त बंधनों को तोड़ कर कराया। उनका विचार था कि छुआछूत ने इस देश में अनेक जटिलताओं को जन्म दिया है तथा वैदिक वर्ण व्यवस्था द्वारा ही इसका अंत कर अछूतोद्धार संभव है।
वे हिन्दी को राष्ट्र भाषा और देवनागरी को राष्ट्र-लिपि के रूप में अपनाने के पक्षधर थे। गुरुकुल कांगड़ी खोलने के लिए उन्होंने भिक्षा की झोली डाल कर न सिर्फ़ घर-घर घूम 40 हजार रुपये इकट्ठे किए, बल्कि वहीं डेरा डाल कर अपना पूरा पुस्तकालय, प्रिंटिंग प्रेस और जालंधर स्थित कोठी भी गुरुकुल पर न्योछावर कर दी। भारतीय हिन्दू शुद्धि सभा की स्थापना कर उन्होंने दो लाख से अधिक मुसलमानों को शुद्ध किया।
श्रद्धानंद सनातन के अकेले सन्यासी थे जिनको जामा मस्जिद के मीनार से वैदिक विचार रखने का सौभाग्य प्राप्त है।चाहे कुछ भी हो स्वामी श्रद्धानन्द अमर होकर आज भी हमारे प्रेरणा स्रोत बने हुए है। यज्ञ एवं श्रद्धांजलि सभा में विद्यालय के समस्त छात्र छात्राओं एवं शिक्षक शिक्षिकाओं ने आहुतियां दी एवं अपने अपने विचार रखे।
