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जयपुर। राजस्थान की राजधानी और पर्यटकों के बीच मशहूर पिंक सिटी, उस वक्त हैरान रह गई जब शहर के एक प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट मालिक और उसके दोस्त को दिनदहाड़े अगवा कर लिया गया। अपहरणकर्ता खुद को राष्ट्रीय जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर पेश कर रहे थे और उनके पास फर्जी आईडी कार्ड तथा दस्तावेज भी मौजूद थे। उन्होंने न केवल दोनों को बंधक बनाया बल्कि तीन करोड़ रुपये की फिरौती भी मांगी। इस दिल दहला देने वाले अपराध का अंत हुआ एक फिल्मी अंदाज़ में—खेतों के बीच भागकर पीड़ितों ने अपनी जान बचाई, और पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई में पांचों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए।
इस वारदात की शुरुआत 28 जून की शाम से हुई, जब सांगानेर निवासी प्रभुमल चौधरी उर्फ पीएन डूडी, जो कि मालवीय नगर के गौरव टावर स्थित अपने रेस्टोरेंट हब फोर्टी में बैठे थे, उन्हें उनके जानकार मुकेश रणवा का वॉट्सऐप कॉल आया। मुकेश ने प्रभुमल को पास के एक शोरूम में मिलने के लिए बुलाया। जब प्रभुमल वहां पहुंचे, तो मुकेश और चार अन्य लोगों ने उन्हें घेर लिया, मारपीट की और जबरन कार में बैठा लिया।
यह सब कुछ अचानक हुआ और प्रभुमल को समझ नहीं आया कि माजरा क्या है। बदमाशों ने उनसे उनके दोस्त सुशील के बारे में जानकारी मांगी। जबरदस्ती प्रभुमल से सुशील को कॉल करवाया गया। सुशील उस समय एक फाइव स्टार होटल में थे। वहां पहुंच कर किडनैपर्स ने उसे भी कार में डाल लिया और दोनों को जयपुर से बाहर ले जाने लगे।
कार अजमेर रोड की ओर दौड़ रही थी। रास्ते में बदमाशों ने दोनों को पीटा, मोबाइल और अन्य सामान छीन लिया, मुंह पर काला कपड़ा बांधा और हाथ रस्सियों से कस दिए। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उन्होंने खुद को एनआईए अधिकारी बताया।
उन्होंने आईडी कार्ड दिखाए, जो पहली नजर में असली लगते थे। इतना ही नहीं, उन्होंने कथित तौर पर एनआईए की फाइलें भी दिखाईं, जिनमें उनके नाम जितेन्द्र सिंह, विधादत्त, अनिल, आमदेव और मनोज कुमार दर्ज थे।
करीब तीन घंटे तक दोनों को अजमेर-भीलवाड़ा हाईवे पर इधर-उधर घुमाया गया। एक सुनसान जगह पर ले जाकर उनसे कुछ फॉर्म भरवाए गए और कई ब्लैंक पेपरों पर साइन भी करवाए गए। यह सब उन्हें मानसिक रूप से डराने और किसी फर्जी दस्तावेज़ के ज़रिए ब्लैकमेल करने की साजिश का हिस्सा था।
इसके बाद अपराधियों ने दोनों को धमकाते हुए कहा कि अगर वे बचना चाहते हैं तो तीन करोड़ रुपये की फिरौती देनी होगी। घबराए हुए प्रभुमल और सुशील ने जवाब दिया कि वे पचास लाख रुपये तक का इंतज़ाम कर सकते हैं। पैसे की बात सुनकर किडनैपर्स थोड़ा नरम पड़े और मोबाइल मंगवाकर परिजनों से बात करने को कहा। वे उन्हें भीलवाड़ा हाईवे के पास एक होटल में ले गए, जहां मोबाइल ऑन करते ही लगातार कॉल्स आने लगे।
उसी समय परिजनों को अनहोनी की आशंका हुई और उन्होंने पुलिस को सूचना दी। लेकिन इससे पहले कि कोई पुलिस पहुंच पाता, प्रभुमल और सुशील ने मौका देखकर भागने की योजना बना ली। उन्होंने होटल से निकलते ही पास के खेतों में दौड़ लगा दी और किसी तरह खुद को बचाया।
खेतों से निकलने के बाद दोनों ने स्थानीय लोगों से मदद ली और फिर जयपुर लौटे। उन्होंने जवाहर सर्किल थाने में जाकर पूरा मामला दर्ज करवाया। इस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस तुरंत हरकत में आई और अलग-अलग जगहों पर दबिश देकर पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
जांच में सामने आया कि आरोपियों ने पूरी साजिश एक सोची-समझी रणनीति के तहत रची थी। वे किसी प्रोफेशनल गैंग का हिस्सा हो सकते हैं जो व्यापारियों और पैसे वाले लोगों को निशाना बनाकर उन्हें हृढ्ढ्र, ढ्ढक्च या ष्टक्चढ्ढ का अधिकारी बताकर अगवा करते हैं, धमकाते हैं, और भारी-भरकम रकम वसूलने की कोशिश करते हैं।
पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को रिमांड पर लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। उनसे यह जानने की कोशिश की जा रही है कि क्या उन्होंने पहले भी इस तरह की कोई वारदात को अंजाम दिया है? उनके पास फर्जी पहचान पत्र, फाइलें और दस्तावेज कहां से आए? उनके गैंग में और कौन-कौन लोग शामिल हैं?
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि प्रारंभिक जांच के अनुसार, यह एक संगठित अपराध का हिस्सा हो सकता है। आरोपियों के पास से जो आईडी कार्ड और दस्तावेज मिले हैं, वे अत्यंत पेशेवर ढंग से तैयार किए गए हैं। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या किसी सरकारी अधिकारी या पूर्व सुरक्षाकर्मी की इसमें भूमिका है।
इस पूरी घटना ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया है कि अगर कोई व्यक्ति खुद को किसी केंद्रीय एजेंसी का अधिकारी बताए तो क्या आम जनता या व्यापारी बिना पुष्टि किए उस पर विश्वास कर ले? क्या अब फर्जीवाड़ा इतने उच्च स्तर तक पहुंच गया है कि देश की सबसे भरोसेमंद एजेंसियों की छवि को भी नुकसान पहुंचाने लगे?
प्रभुमल और सुशील की सूझबूझ और साहस ने न केवल उनकी जान बचाई, बल्कि एक बड़े अपराध को समय रहते उजागर भी कर दिया। हालांकि वे मानसिक रूप से अभी भी इस सदमे से बाहर नहीं निकल पाए हैं, पर यह उनकी हिम्मत थी जिसने उन्हें जिंदा लौटने का मौका दिया।
जयपुर पुलिस की तेज़ी से की गई कार्रवाई और आरोपियों की गिरफ्तारी ने जनता में एक बार फिर विश्वास पैदा किया है, लेकिन इस वारदात ने यह भी दिखा दिया कि अपराधी अब कानून के डर से नहीं, बल्कि कानून की नकल करके अपराध कर रहे हैं।
इस केस से एक बड़ा संदेश निकलता है: अगर कोई व्यक्ति खुद को जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर आपको रोकता या उठाता है, तो उसकी पहचान की पुष्टि करना आपका अधिकार है। और सबसे जरूरी बात, ऐसे मामलों में डरने की बजाय फौरन पुलिस की मदद लें, क्योंकि फर्जीवाड़े का अगला शिकार कोई भी हो सकता है।