•प्रेसवार्ता में बोले शासकीय अधिवक्ता।
बाराबंकी। धाम उ.प्र. संयोजक व अधिवक्ता अमित अवस्थी ने नोटबंदी के 9 वर्ष पूर्ण होने पर दिलचस्प दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 8 नवंबर 2016 में मुख्यतः इसलिए नोटबंदी करनी पड़ी क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक को भी नहीं पता था कि उसने कितनी नोटें छापी हैं जबकि सरकार अब तक यही बताती रही है कि उसे जालसाजी और नकली नोटों को रोकने, भ्रष्टाचारियों द्वारा अकूत सम्पत्ति के रूप में नोटों को इकट्ठा करने एवं आतंकवाद को रोकने के लिए नोटबंदी करनी पड़ी थी।
अमित अवस्थी अपने दावे के संबंध में बताते हैं कि उन्होंने नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले ही सन् 2013 में भारतीय रिजर्व बैंक के मुख्यालय से नोटों के सम्बंध में कुछ सूचनाएंँ मांगी थीं जिनके जवाब में आरबीआई मुख्यालय ने बताया था कि उसको अब तक छापे गये नोटों की पूर्ण संख्या नहीं पता है और न ही कितने नोट कटने-फटने के कारण आरबीआई ने नष्ट किये इसकी उसके पास कोई जानकारी है। साथ ही नोटों से हिंदी के अंकों को हटाने का आदेश किसका था यह भी रिजर्व बैंक नहीं बता पाया था।
अमित अवस्थी कहते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना सन् 1935 में हुई थी तब से कई प्रधानमंत्री ऐसे हुए जिनसे उपलब्ध सोने के सापेक्ष नोट छापने के नियम के पालन की उम्मीद करना बेमानी लगता है। इसका पहला सबूत यह है कि एक ही नंबर की कई नोट, नोटबंदी के पूर्व लोगों के हाथ में आ जाती थीं जो जनता में चर्चा का विषय होती थीं और दूसरा सबूत यह है कि रिजर्व बैंक द्वारा बताई गई नोटों की संख्या के आधार पर सरकार ने जितनी नोटों की संख्या बताई थी उससे ज्यादा नोट नोटबंदी में जमा हुईं थीं।
अमित से जब पूछा गया कि विपक्ष द्वारा सवाल करने के बावजूद भाजपा अथवा सरकार द्वारा इस संबंध में अब तक ऐसा कोई साक्ष्य क्यों नहीं दिया गया तो अमित अवस्थी ने बताया कि पहली बात तो भाजपा के पास ऐसा कोई साक्ष्य है ही नहीं दूसरा रिजर्व बैंक और सरकार गोपनीयता के चलते इस प्रकार का कोई जवाब देने से बच रही होगी। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के बाद छपी नोटों में हिंदी के अंकों को पुनः स्थान दिया गया है।
