
•विद्वत समाज में हर्ष की लहर
बलिया/नेपाल: नेपाल राष्ट्र की प्रतिष्ठित सहकारी संस्था सरस्वती राजनारायण प्रतिष्ठान साहित्य संवर्धन समिति द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय मानस मंथन एवं सम्मान समारोह में ख्यातिलब्ध शिक्षाविद एवं आध्यात्मिक साहित्यकार डॉ. विद्यासागर उपाध्याय को ‘याज्ञवल्क्य प्रज्ञा सम्मान’ से सम्मानित किया गया। इस सम्मान से बलिया सहित सम्पूर्ण विद्वत समाज में उत्साह एवं गर्व की अनुभूति देखी जा रही है।
‘मानस में सामाजिकता’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. उपाध्याय ने कहा, “श्रीमद्भगवद्गीता और रामचरितमानस दोनों ही लोकप्रिय ग्रंथ हैं। अंतर केवल इतना है कि गीता मरना सिखाती है और मानस जीना।” उन्होंने श्रीराम के जीवन आदर्शों की तुलना आधुनिक सामाजिक मूल्यों से करते हुए कहा कि रामचरितमानस ने जन-जन को मर्यादा और आदर्श जीवन का मार्ग दिखाया है।
डॉ. उपाध्याय ने कहा, “मानस की शिक्षा विश्वामित्र की शिक्षा की तरह सर्वसुलभ और समावेशी थी, जबकि महाभारत की द्रोणाचार्य की शिक्षा केवल राजकुमारों तक सीमित थी। आज की शिक्षा का उद्देश्य केवल धनार्जन रह गया है।” उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि मानस की शिक्षा से आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श प्रजा, आदर्श राजा, आदर्श बहू और आदर्श सास जैसी संस्थाएं मिलीं, जबकि द्रोण की शिक्षा ने पारिवारिक विघटन को जन्म दिया। उन्होंने एक समसामयिक उदाहरण भी देते हुए बताया कि कैसे गुरुग्राम में एक कक्षा दो के छात्र ने केवल छुट्टी के लिए सहपाठी पर हमला कर दिया।
अपने व्याख्यान में डॉ. उपाध्याय ने अनेक वैदिक और समसामयिक दृष्टांतों से अपने विचारों को पुष्ट किया। कार्यक्रम में नेपाल, भारत, बांग्लादेश और कनाडा से आए विद्वानों ने डॉ. उपाध्याय से संवाद किया और उन्होंने सभी प्रश्नों के सारगर्भित उत्तर देकर सभागार की ज्ञान-पिपासा को तृप्त किया।
समारोह की अध्यक्षता चन्द्रेश्वर प्रसाद रौनियार ने की तथा संचालन डॉ. रेखा कुमारी राय द्वारा किया गया। अंत में विद्यावाचस्पति डॉ. अजय कुमार झा ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर अन्य विशिष्टजनों को भी सम्मानित किया गया: वरिष्ठ कवि विष्णु सक्सेना को अष्टावक्र प्रज्ञा सम्मान, वरिष्ठ शिक्षाविद् वीणा सक्सेना, मानस मर्मज्ञ प्रतिभा उपाध्याय, सीतामढ़ी की सावित्री मिश्रा, एवं प्रख्यात आलोचक डॉ. रिंकी पाठक को जानकी मेघा सम्मान।
कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि शरद जायसवाल, गीतकार अनिल मिश्र, राजेन्द्र विमल, डॉ. दिनेश शर्मा, शैलेश तिवारी सहित अनेक विद्वानों ने भाग लिया।
डॉ. विद्यासागर उपाध्याय को इस उपलब्धि पर देश-विदेश से शुभकामनाएं प्राप्त हो रही हैं। न्यूयॉर्क से पं. सत्यनिवास वशिष्ठ, उज्जैन से महामंडलेश्वर डॉ. सुमनानंद गिरी, वृन्दावन से महामंडलेश्वर राधाशरण सरस्वती, काशी से प्रो. विश्वंभर मिश्र, नैमिषारण्य से उमापति शास्त्री, गाजियाबाद से सुदीप महात्मा, और मेरठ से आचार्य कमल किशोर लिसाड़ी ने भी डॉ. उपाध्याय को शुभकामनाएं दी हैं।