
बस्ती। किसानों की आय बढ़ाने की योजनाओं को लागू करने के बावजूद सरकार किसानों को उनका लाभ नहीं दे पा रही है, क्योंकि कमीशन एजेंट, व्यापारी और थोक विक्रेता किसानों की उपज को बाजार पर लाने पर अपने मनमाफिक रेट तय करते हैं। इससे मुनाफे का बड़ा हिस्सा बिचौलिए के हड़प कर जाते हैं। इससे किसानों के लिए बहुत कम बचता है।

आलू की दुर्गति के बाद सैकड़ों किसानों ने अत्याधुनिक तकनीकी और सरकारी मदद से सब्जी की खेती में हाथ आजमाया। जी-तोड़ मेहनत और औकात से ज्यादा पूंजी लगाने के बाद जब कमाई की बारी आई तो इस पर बिचौलियों की बुरी नजर लग गई।
साफ-सुथरी और देखने में आकर्षक सब्जियों को भी खेतों से औने-पौने दाम पर खरीदकर बिचौलिए तो अच्छा मुनाफा कमा गए, लेकिन मेहनत और पूंजी लगाने के बाद भी किसानों के लागत निकालने में भी पसीने छूट गए।
पिछले 10 वर्षों में बहादुरपुर, हर्रैया, दुबौलिया, बनकटी, गौर, विक्रमजोत, कुदरहा सहित अन्य ब्लाकों के सैकड़ों किसानों ने अत्याधुनिक विधि से सब्जियों की खेती शुरू की। बंजरिया में लगे इंडो-इजराइल फार्म से उन्नतिशील बीज और पौधे भी उपलब्ध हो गए तो उनके लिए सोने पर सुहागा हो गया। जंगली जानवरों से बचाने के लिए ज्यादातर लोगों ने बैंक से कर्ज लेकर बाड़ लगवाई।
किसान बताते हैं कि तीन एकड़ खेत में केला, खीरा, शिमला मिर्च, टमाटर की खेती शुरू की। अच्छी उपज मिलने के बावजूद बाजार में कच्चा केला 12 से 15 रुपये किलो, खीरा 10-15 रुपये किलो, शिमला मिर्च 40-50 रुपये किलो बेचनी पड़ी। जबकि, बाजार में सबके भाव दोगुने थे।
मजदूरी और खेत की लागत जोड़ने के बाद लगा कि इस पर बेकार में समय गंवा रहे हैं।
किसान बताते हैं कि गन्ने की खेती छोड़कर अब वह केला, टमाटर, खीरा, शिमला मिर्च, भरुआ मिर्च, लौकी, करैला आदि की खेती कर रहे हैं। इसमें सभी अत्याधुनिक संसाधन लगा रखे हैं। पैदावार भी अच्छी हो रही है, लेकिन उस हिसाब से फायदा इसलिए नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि उन्हें इसके लिए बाजार नहीं मिल रहा है। मंडी में भी किसानों की उपज को व्यापारी अच्छा भाव नहीं देते, जबकि बिचौलिए बेहतर कीमत पा रहे हैं।