

✍️प्रवीण तिवारी।
विचार मंथन: वर्तमान उपभोक्ता वादी समय में कचरे की मात्रा और इसका स्वरूप दोनों में व्यापक बढ़ोत्तरी हुई है। यदि हम समय रहते नहीं चेते तो यह समस्या विकराल होती चली जायेगी। इसके प्रबंधन के लिए सर्वप्रथम आम जनमानस को कचरे का वर्गीकरण करना आना चाहिए। उदाहरण के लिए कचरा जैविक, प्लास्टिक, शीशा, कागज, धातु, इलेक्ट्रॉनिक आदि किस स्वरूप का है। इससे कचरा परिवहन और निस्तारण में आसानी होगी।
कचरे के प्रबंधन में प्लास्टिक, कागज, शीशा, धातुओं आदि की रिसाइक्लिंग करके इनका बेहतर प्रबंधन किया जा सकता है।
जैविक कचरे को कंपोस्ट खाद के रूप में तैयार करके खेतों में प्रयोग करके न केवल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, बल्कि रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादित अनाजों से होने वाली अनेक बीमारियों (कैंसर, हार्ट अटैक आदि) से बचा जा सकता है।
कचरा निपटान के लिए उपयुक्त स्थान का चयन अत्यंत आवश्यक है। इसके अतिरिक्त आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करके इसका पूरी तरह निपटान संभव है।
कचरे के कम उत्पादन, दोबारा प्रयोग तथा उपभोक्ता वादी प्रवृत्ति को हतोत्साहित करके इसके प्रबंधन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है।
कचरा प्रबंधन संबंधी नीतियों का पालन करके तथा स्थानीय प्रशासन का सहयोग करके इसके प्रबंधन में सफलता मिल सकती है।
सामुदायिक कार्यक्रमों, सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग, विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल करके, पुस्तकों, पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, वीडियो, डाक्यूमेंट्री, फिल्मों आदि के माध्यम से लोगों को जागरुक करके इस दिशा प्रभावी सफलता प्राप्त की जा सकती है।
उत्तर प्रदेश में प्रयागराज महाकुंभ 2025 के आयोजन में व्यापक तैयारी और प्रशासनिक कटिबद्धता के परिणाम स्वरूप
लगभग 65 करोड़ लोगों के इस शहर में आने के बावजूद भी उत्पादित कचरे का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया जा सका है।
हाल ही में दिल्ली के चुनाव में कूड़े के पहाड़ और यमुना नदी के प्रदूषण को बड़े चुनावी मुद्दे के रूप में देखा गया। चुनाव के बाद सरकार द्वारा सबसे पहले यमुना नदी की सफाई का कार्य प्राथमिक रूप से किया जाना इस बात का द्योतक है कि सबसे प्राथमिक कार्य कचरा प्रबंधन होना ही चाहिए।