
सुल्तानपुर। मोटी फीस और किताबों व स्कूल ड्रेस के नाम पर कमीशनखोरी से अभिभावकों की कमर टूट रही है। उच्च शिक्षा की तो बात क्या है। पढ़ाई की शुरुआत करने वाले बच्चे पर भी इतना खर्च हो रहा है कि घर का दूसरा खर्च एक तरफ और एक महीने की फीस तथा कापी किताबों की कीमत एक तरफ। स्थिति किसी से छिपी नहीं है इसके बावजूद विभाग और सरकार की खामोशी समझ से परे है।
एक तरफ शिक्षा को हर किसी तक पहुंचाने के लिए शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू हो रहे है और दूसरी तरफ शुरुआत की सामान्य पढ़ाई भी पहुंच से बाहर हो रही है। इन दिनों स्कूलों में दाखिलों का दौर चल रहा है। ऐसे में दाखिला फीस, स्कूल ड्रेस, कापी, किताब और बस्ते के खर्च को मिलाकर हिसाब, किताब और ड्रेस की जो लिस्ट अभिभावकों को मिल रही है उसे देखकर तो दिन में ही तारे नजर आ रहे है। महंगाई की मार से पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही है। नए सत्र से कई स्कूलों ने फीस भी बढ़ा दी है, तो ऐसे में बोझ भी बढ़ रहा है। महंगाई ने पहले ही जीना मुहाल किया हुआ है। ऐसे में शिक्षा के बढ़ते खर्च ने तो हर किसी के होश उड़ा दिऐ है।
साल दर साल महंगी हो रही शिक्षा लंबे अर्से की बात तो दूर। पिछले एक वर्ष के दौरान ही स्कूल की फीस के अलावा बस्ते, कापी, किताबों तथा वर्दी तक के दामों में वृद्धि हुई है। इससे अभिभावक पसोपेश में है। अधिकतर प्राइवेट स्कूल संचालकों ने फीस में बढ़ोतरी की है। नया शिक्षा सत्र शुरू होने से साथ अभिभावकों की दौड़ भी विभिन्न स्कूलों में लगनी शुरू हो गई है। अभिभावक अपने बच्चों का अच्छे स्कूलों में दाखिल कराना चाहते है, लेकिन खर्च इतना है कि उसे उठा पाना हर किसी की वश की बात नहीं।
ऐसे होता फीस का खेल
फीस की बात की जाए तो एक मध्यम स्कूल में नर्सरी कक्षा के बच्चे की फीस तीन सौ से चार सौ रुपये तक है जबकि दाखिला फीस 3000 से 15000 रुपये तक आता है। पहले फीस 2000 से 2500 रुपये थी अब लगभग 3000 से 4000 रुपये कर दी गई है। वहीं उच्च स्कूलों में तो यह 4500 से 10000 रुपये के आसपास है।
कापी, किताबों व स्कूल ड्रेस में मोटा कमीशन
जानकारों का कहना है कि स्कूल से ही बच्चों को कापी, किताबें और ड्रेस देने का जो खेल है उसमें अभिभावक खुद ठगे जा रहे है। नर्सरी से चौथी कक्षा तक स्कूलों की ओर से निजी प्रकाशकों की पुस्तकें पढ़ाई जा रही है। इन किताबों को खरीदने वाले अभिभावकों को भारी चपत लगती है। जबकि सरकार ने दाखिला फीस को लेकर तीन वर्ग बना रखे है और यह स्पष्ट किया हुआ है कि अधिकृत पुस्तकें ही लागू की जाएंगी।
मगर किताबों व ड्रेस में स्कूल संचालकों का मोटा कमीशन होता है और उसकी मार अभिभावकों की जेब पर पड़ती है। 30 रुपये वाली किताब का मूल्य 120 से 250 तक रुपये हो गया है। ऐसे में यदि अभिभावक अपने दो बच्चों को स्कूल में दाखिला कराने और उनके लिए किताब, कापी, बैग व ड्रेस खरीदने जा रहा है तो उसे एक नहीं बल्कि सभी जेबें पैसों से भरकर जाना पड़ेगा। जो कापी बाजार में कम कीमत में मिल सकती है वह स्कूल से ज्यादा दामों में खरीदनी पड़ती है।
स्कूल संचालक खुद ही बच्चों को कापी किताबें उपलब्ध करा रहे है इससे उन्हें काफी लाभ हो रहा है। इस तरफ शिक्षा विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। शहर के गंदा नाला, गभरिया, रामकली मोहल्ला, बाटा गली, पंच रास्ता, गभरिया क्षेत्र के अभिभावक सुरेद्र सिंह, मीनाक्षी, कविता, रविराज, प्रमिला, पुरुषोत्तम, सुरेश गुप्ता का कहना है कि जो कापियां स्कूल संचालकों की ओर से 160 रुपये दर्जन के हिसाब दी जा रही है वही कापियां बाजार में 110 से 120 रुपये के हिसाब से मिल रही है।
‘जल्दी-जल्दी बदलती ड्रेस’
कमीशन खोरी के चलते ज्यादातर स्कूलों की ड्रेस भी जल्दी-जल्दी बदल जाती है। बाजार की कीमत और स्कूल के रेट को देखा जाये तो काफी अंतर होता है। स्कूल की ओर से तय दुकान से जो वर्दी लेने का दबाव पड़ता है वह बाजार में कम कीमत में आसानी से मिल सकती है लेकिन इसमें भी ऐसा खेल खेला जाता है कि दूसरी किसी जगह पर वह ड्रेस मिल ही नहीं पाती। मतलब ऐसे रंग का कपड़ा तय किया जाता है कि जो अमूमन बाजार में मिलता नहीं और व एक परमानेंट दुकान परिवार कलेक्शन पर उपलब्ध होता है।