

आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
विचार मंथन: नंदगांव मथुरा ज़िले में प्रसिद्ध पौराणिक ग्राम बरसाना के पास एक बडा नगरीय क्षेत्र है। यह नंदीश्वर नामक सुन्दर पहाड़ी पर बसा हुआ है। यह कृष्ण भक्तों के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। किंवदंती के अनुसार यह गांव भगवान कृष्ण के पिता नंदराय द्वारा एक पहाड़ी पर बसाया गया था। इसी कारण इस स्थान का नाम नंदगांव पड़ा। गोकुल को छोड़ कर नंदबाबा श्रीकृष्ण और गोप ग्वालों को लेकर नंदगाँव आ गए थे।
यहां की औसत ऊंचाई 184 मीटर (603 फीट) है। नंदगांव मथुरा से 56 कि॰मी॰ और बरसाना से 8.5 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। यह स्थान मथुरा, बरसाना और कोकिला वन से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।
नंदगांव का सांस्कृतिक परिचय
यार नहीं ब्रजराज कुँवर सौ।
तू प्रेम नहिं ब्रजवासिं कौ सौ।।
हेत नहीं हरि भक्ति समता।
देश नहीं ब्रजमंडल जैसौ।।
नाम रटें यहां कृष्ण राधा।
निर्मल है यमुना जल जासौ।।
नाम नहीं मन मोहन कौ सौ।
और गांव नहिं नंदगांव के जैसौ।।
यहां नंदराय (नंदबाबा) का एक मंदिर प्रसिद्ध है, इसी नन्दीश्वर पर्वत पर कृष्ण भगवान व उनके परिवार से संबंधित अनेक दर्शनीय स्थल भी हैं जिनमें नरसिंह, गोपीनाथ, नृत्य गोपाल, गिरधारी, नंदनंदन और माता यशोदा के मंदिर हैं| पर्वत के साथ ही पावन सरोवर तथा पास ही में एक बड़ी झील है जिस पर मसोनरी घाट निर्मित है। मान्यता है कि यहां पर भगवान कृष्ण अपनी गायों को स्नान कराने लाया करते थे। पास ही खदिरवन, बूढ़े बाबू, नंदीश्वर, हाऊ-बिलाऊ, पावन सरोवर, उद्धव क्यारी नामक दूसरे स्थान भी यहाँ कृष्ण के जीवन की विभिन्न घटनाओं से सम्बद्ध माने जाते हैं।
नंदराय मंदिर

यह मंदिर 18वीं शताब्दी में भरतपुर के जाट राजा रूपसिंह द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर कृष्ण के पिता नंदराय को समर्पित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर थोड़ी सी चढ़ाई करनी पड़ती है।
शनि मंदिर

पान सरोवर से कुछ ही दूरी पर कोकिला वन में स्थित प्राचीन शनि मंदिर है। मान्यता है कि शनि जब यहां आये तो कृष्ण ने उन्हें एक जगह स्थिर कर दिया ताकि ब्रजवासियों को उनसे कोई कष्ट न हो। प्रत्येक शनिवार को यहां पर आने वाले श्रद्धालु शनि भगवान की 3 कि॰मी॰ की परिक्रमा करते हैं। शनिश्चरी अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। कोकिलावन के शनि मंदिर से नंदगांव का नजारा भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जब कि नंदराय मंदिर के ऊपर से आप ब्रज के हरे भरे भूभाग, इसके प्राकृतिक सौंदर्य, कोकिलावन के शनि मंदिर और बरसाना के राधारानी के महल का दर्शन कर सकते हैं।
नंद भवन
नंद भवन में भगवान कृष्ण की काले रंग के ग्रेनाइट में उत्कीर्ण प्रतिमा है। उन्ही के साथ नंदबाबा, यशोदा, बलराम और उनकी माता रोहिणी की मूर्तियां भी है।
नंदीश्वर मंदिर

नंदगांव में भगवान शंकर का मंदिर नंदीश्वर महादेव है। कृष्ण जन्म के बाद भगवान शंकर साधु के वेश में उनके दर्शन के लिए नंदगांव आए थे। पर यशोदा ने उनका विचित्र रूप देख कर इस आशंका से कि शिशु उन्हें देख कर डर न जाए उन्हें अपना बालक नहीं दिखाया। भगवान शंकर वहां से चले गये और जंगल में जाकर ध्यान लगा कर बैठ गए। इधर भगवान श्रीकृष्ण अचानक रोने लगे और सब ने उन्हें चुप कराने की बहुत कोशिश पर भी वह जब चुप ही नहीं हुए तब यशोदा के मन में विचार आया कि जरूर वह साधु कोई तांत्रिक रहा होगा जिसने बालक पर जादू-टोना कर दिया है। यशोदा के बुलाने पर एक बार फिर शंकर जी वहां आये। तत्काल भगवान कृष्ण ने रोना बंद कर उन्हें आया देख कर मुस्कुराना शुरू कर दिया। साधु ने से माता यशोदा से बालक के दर्शन करने और उसका जूठा भोजन प्रसाद रूप में माँगा। तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि भगवान कृष्ण को लगाया गया भोग बाद में नंदीश्वर मंदिर में शिवलिंग पर भी चढ़ाया जाता है। वन में जिस जगह शंकर जी ने कृष्ण का ध्यान किया था वहीं नन्दीश्वर मंदिर बनवाया गया है|
पावन सरोवर

यह सरोवर नंदीश्वर पर्वत की तलहटी में स्थित है। कहा जाता है माता यशोदा कृष्ण भगवान को इसी सरोवर में स्नान करवाया करती थी। नंदराय और अन्य पुरूष लोग यहीं पर स्नान किया करते थे। इस सरोवर का जीर्णोद्धार संवत 1804 में वर्धमान की रानी ने कराया था। इस सरोवर का जल साफ है- इस कारण इसका नाम पावन सरोवर है। इसका पुनुरुद्धार ब्रज फाउंडेशन ने किया है|
भजन कुटीर सनातन गोस्वामी
पावन सरोवर के पास ही में पावन बिहारी जी का मंदिर है। भगवान कृष्ण ने गोस्वामी जी को स्वप्न में बताया था कि नंदीश्वर पर्वत की गुफा में नंदबाबा, यशोदा और बलराम की मूर्तियां रखी हुई हैं। इसके बाद सनातन गोस्वामी ने यहां ला कर उन तीन मूर्तियों को स्थापित किया बताया।
वृंदा देवी कुण्ड :-
श्री राधा रानी और श्री कृष्ण के समय बिताने के क्रियाकलापों की देखरेख वृंदा देवी करती हैं। इस मंदिर के पीछे, गुप्त कुंड में, श्री राधा-कृष्ण की दिन की पहली मुलाकात का स्थान माना जाता है। जब राधा और कृष्ण आते हैं, तो द्वार खुल जाते हैं, और वृंदा देवी अन्य साकियों और सखाओं को इस प्रकार व्यवस्थित करती हैं कि राधा और कृष्ण उनके द्वारा अभी-अभी बनाए गए कुंज के मध्य में आ जाते हैं। नंद बाबा मंदिर और वृंदा देवी मंदिर के बीच की दूरी 3 किलोमीटर है।
मोती कुण्ड
नंदीश्वर पहाड़ और पावन सरोवर से कुछ दूरी पर ही स्थित कुंड जहाँ राधा और कृष्ण का मंदिर है। मान्यता है कि यहीं राधा के पिता वृषभानु ने कृष्ण के पिता नंदराय को सोने के आभूषण और मोती भेंटस्वरुप दिए थे।
नरसिंह और वराह मंदिर
यह मंदिर भी नंदीश्वर पहाड़ी की तलहटी में स्थित है। यह मंदिर पावन सरोवर के विपरीत दिशा में है। नंदराय इसी मंदिर में नृसिंह | नरसिंह और वराह भगवान की पूजा किया करते थे। नंदराय को वराह और नरसिंह भगवान की पूजा करने की सलाह गर्गाचार्य ने दी थी।
यशोदा कुण्ड
नरसिंह मंदिर से 300 मी. की दूरी पर यशोदा कुण्ड स्थित है। कहा जाता है यशोदा इसी कुण्ड में स्नान किया करती थीं। यशोदा कुण्ड नंदीश्वर पर्वत से आधा कि॰मी॰ की दूरी पर है।
नंद बैठक
नंद बैठक वह स्थान है जहां नंदराय अपने सहयोगी मित्रों और हितैषियों से विचार- विमर्श किया करते थे। इसी स्थान के समीप नंद कुण्ड है जहाँ नंदराय स्नान किया करते थे।
चरण पहरी

यह स्थान नंदगांव से दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस स्थान पर भगवान कृष्ण के चरणचिन्ह हैं।
वृंदा कुण्ड, गुप्त कुण्ड
कहा जाता है कि नंदगांव से 1 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित इस स्थान पर भोर के समय राधा-कृष्ण गुप्त रूप से मिला करते थे। दोपहर के समय में वे राधा कुण्ड और रात्रि के समय में वृंदावन में भेंट करते थे। यहीं पर एक सुंदर मंदिर है जिसके अन्दर माता वृंदा (तुलसी) की प्रतिमा है। गुप्त कुण्ड ब्रज के महत्वपूर्ण कुण्डों में से एक है। यह ब्रज के तीन योग पीठों मे से एक माना जाता है।
ललिता कुण्ड
कहा जाता है ललिता जहाँ झूला-झूला करती थी वहां राधा की सखी ललिता ने राधा की कृष्ण से एक बार गुप्त भेंट कराई थी। कुण्ड के आगे एक मंदिर है जिसमें राधा-कृष्ण और ललिता की मूर्तियां है।
लेखक परिचय:- लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।