
“जीवन जीना सिखाती है रामायण, मृत्यु सुधारती है देवी भागवत”
लखनऊ।
श्री मद् भागवद् फाउंडेशन द्वारा आयोजित श्रीमद् देवी भागवत कथा का आयोजन मनकामेश्वर शनि हनुमान मंदिर, सुरेन्द्र नगर कमता, लखनऊ में किया जा रहा है। कथा के द्वितीय दिवस की शुरुआत विश्व शांति की प्रार्थना के साथ हुई।
कथावाचक डॉ. कौशलेंद्र कृष्ण शास्त्री जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कहा कि जीवन जीना सीख लिया तो कल्याण संभव है, और यदि जीवन जीना नहीं सीखा, तो कम से कम मरना तो सीखें—वह भी ऐसा कि फिर दोबारा मरना न पड़े। मनुष्य योनि ही एकमात्र ऐसा अवसर है जिसमें ऐसी मृत्यु संभव है। श्रीमद् देवी भागवत यही सिखाती है कि मृत्यु को कैसे सुधारा जाए।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपनी आँख, कान और वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए, क्योंकि यही पाप के मुख्य द्वार हैं। जो अपनी आँखों पर नियंत्रण नहीं रखता, वह पाप को देखता है; जो कानों पर नियंत्रण नहीं रखता, वह पाप को सुनता है; और जिसकी वाणी पर नियंत्रण नहीं है, वह पाप को बोलता है। इन तीनों में सबसे प्रभावशाली हमारी दृष्टि है, क्योंकि जो आँखें देखती हैं, वही सुनना और बोलना चाहती हैं।
उन्होंने वर्तमान समय की चर्चा करते हुए कहा कि जब तक मोबाइल नहीं था, जीवन सरल और सुंदर था। लेकिन आज सोशल मीडिया के कारण हम कई बार अनचाही व अनैतिक सामग्री के संपर्क में आ जाते हैं। माता-पिता हमें संसाधन दे सकते हैं, लेकिन उनका सही उपयोग करना हमारी जिम्मेदारी है।
डॉ. कौशलेंद्र महाराज ने कहा कि हमारे संस्कार ही यह तय करते हैं कि हम सुयोग्य हैं या अयोग्य। हमारा बोलना, चलना, आचरण और कर्म—सभी हमारे लक्षणों को प्रकट करते हैं। रामायण और श्रीमद् देवी भागवत हमारी संस्कृति के दो प्रमुख पुराण हैं—जहां रामायण हमें जीवन जीने की कला सिखाती है, वहीं देवी भागवत मृत्यु को सुधारने की दिशा दिखाती है।
कार्यक्रम में यज्ञाचार्य पं. अतुल शास्त्री, सूरज दास, राम उदय दास, सुमन मिश्रा, कमलावती मिश्रा, कंचन पाण्डेय, लज्जा, मंजू, मानसी, रश्मि, उमा, शिवा, वंदना, विभा, रेनू, अन्नपूर्णा, रागिनी, प्रिया, प्रीति, रंजना सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।