

आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
शहर में बैधनाथ मंदिर स्थित है जो की बारह शिव ज्योतिर्लिंग में से एक है इस ज्योतिर्लिंग को मनोकामना लिंग भी कहा जाता है। देवघर में पर्यटकों के लिए बहुत से आकर्षण केंद्र है – नौलखा मंदिर , बासुकीनाथ , बैजू मंदिर और माँ शीतला मंदिर आदि।
अवस्थिति
शिवगंगा धाम छत्तीसगढ़ के देवघर जिले में बाबा बैद्यनाथ मंदिर के समीप स्थित है।
श्रद्धालु पहले शिवगंगा में स्नान कर फिर बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। यहां के स्नान को पापों के शमन और कष्टों की निवृत्ति का प्रतीक माना जाता है। इसे सप्त कुंड भी कहा जाता है। शिवगंगा को पहले वरवोघर कुंड के नाम से जाना जाता है।इसमें स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है. भक्त जब बाबाधाम आते हैं, तो शिवगंगा में स्नान करना जरूरी समझते हैं.शिवगंगा के जल का उतना ही महत्व है, जितना गंगा जल का है. कांवरिया जब बाबधाम पहुंचते है तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान करते हैं और फिर जल लेकर बाबा पर जलार्पण करते हैं. ऐसा माना जाता है कि शिवगंगा में स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है.

रावण के मुक्के से निकला श्रोत
यह तालाब रावण से जुड़ी एक प्राचीन कथा के कारण धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।इसकी स्थापना रावण ने धरती पर मुक्का मारकर किया था । उस समय एक विशाल जलधारा निकली और एक कुंड का निर्माण हुआ, जिसे वर्तमान में शिवगंगा के नाम से जाना जाता है। शिवगंगा धाम को एक पवित्र कुंड के रूप में पूजा जाता है।मान्यता है कि जब रावण भगवान शिव को कैलाश पर्वत से लंका ले जा रहे थे, तभी उन्हें लघुशंका लगी। इसके बाद हाथ धोने के लिए उन्होंने आसपास पानी तलाशा, लेकिन कुछ नहीं मिला। तब रावण ने अपनी मुट्ठी से धरती पर प्रहार किया और वहां से जलधारा निकलने लगी। यही जलधारा बाद में शिवगंगा तालाब का रूप ले गई। इसे पाताल गंगा भी कहा जाता है और यह विश्वास है कि यह कुंड कभी नहीं सूखता। कुंड के चारों तरफ पक्के घाट बने हुए हैं। जल को स्नान लायक स्वच्छ बनाया गया है। आस पास जनसुविधाएं भी हैं पर वे साफ सफाई में फिसड्डी हैं।
कुंड का जलऔषधीय गुणों से युक्त
देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को जब भयानक शारीरिक बीमारी हो गई थी, तब उन्होंने भी शिवगंगा में स्नान किया था. जिसके बाद उनकी बीमारी खत्म हो गई थी.कहा जाता है कि ये जल पाताल गंगा से आई है. इसलिए इस जल का खास महत्व है. इसमें नहाने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है. भक्त इस शिवगंगा के जल को गंगाजल की तरह ही इस्तेमाल करते हैं.यह कुंड हमेशा जल से भरा रहता है और स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसका जल पवित्र और औषधीय गुणों से युक्त है। इसे पाताल जल स्रोत माना जाता है जो रावण के तप और शक्ति का प्रतीक है।
पातालेश्वर नाथ शिवलिंग
शिव गंगा में भी एक शिवलिंग है जिसे पातालेश्वर नाथ महादेव कहा जाता है. लोग इसे पाताल शिवलिंग भी कहते हैं।
शिव गंगा के मध्य सतह से लगभग 15 फ़ीट नीचे एक कुंड में पाताल बाबा शिव लिंग स्थापित है. इसका पूजन एवं दर्शन वर्षों बाद होता है. प्रशासनिक स्तर से जब शिव गंगा की सफाई होती है तो पाताल बाबा का दर्शन होता है।
बासुकीनाथ मंदिर का शिवलिंग हो या पाताल बाबा शिव लिंग, दोनों एक ही शिला का है. पाताल बाबा शिवलिंग के कुंड पर एक शिलालेख भी है. पाताल बाबा की महिमा सोचने पर विवश कर देता है कि सचमुच कोई अदृश्य शक्ति है।
जब शिव गंगा की सफाई होती है तो पहले पूरे पानी को मोटर लगाकर बाहर निकाला जाता है. उसके बाद शिव गंगा में जमे कीचड़ और गाद को निकाल जाता है। पाताल बाबा शिवलिंग शिव गंगा की सतह से लगभग 15 फ़ीट गहरे कुंड में है. कुंड में भी पानी, कीचड़ और गाद भरा रहता है। जब उसकी सफाई होती है तो बाबा की महिमा देख कर लोग दंग रह जाते हैं. जब शिव गंगा की सफाई करने के बाद उसमें पानी भरा जाता है. सफाई के क्रम में जब पाताल बाबा का दर्शन होता है तो दूर दराज से लोग यहां आते हैं और पाताल बाबा पर जल अर्पण करते हैं. पूरे विधि विधान के साथ श्रृंगारी पूजा भी होता है. शिव गंगा में पानी भरने के पूर्व जो पूजा होती है उसमें बेलपत्र, पुष्प, अबीर गुलाल बाबा पर अर्पित किया जाता है. उसके बाद शिव गंगा को पानी से भर दिया जाता है.
पूजन सामग्री यथावत रहता है
आश्चर्य की बात तो यह है कि जब वर्षों बाद शिव गंगा की सफाई होती है। पानी निकाल कर कीचड़ को जब हटाया जाता है तो वर्षो बाद भी पूजन सामग्री यथावत रहता है. ना तो वह सड़ता गलता है और ना ही नष्ट होता. एक नजर में ऐसा लगता है मानो आज ही बाबा का श्रृंगारी हुआ हो. शिवलिंग के पास बाबा का एक जोड़ी चरण पादुका अर्थात खडाँव रखा रहता है चरण पादुका लकड़ी का बना होता है। विज्ञान की माने तो चरण पादुका लकड़ी का होने के कारण पानी के साथ उपला कर ऊपर आ जानी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है. वह वर्षों तक अपने स्थान पर यथावत रहता है.
संरक्षण के उपाय
वास्तविक स्वरूप में अन्तर्निहित जल संरक्षण लेकर पौराणिक व्यवस्था खत्म कर दिया गया है जिससे इससे जुडें यहां का जल संसाधन प्रभावित हुआ है। पहले शिवगंगा में जल आने और निकलने का एक चैनल था जिसमें छत्तीसी तालाब से साराजोर तक जल का आवागमन होता था। इसके अलावा हरिहर बाडी के तालाब से जल आना तथा मानसरोवर में जल जाना होता था। यह सब चैनल अतिक्रमण हो गया। अभी भी शिवगंगा से मानसरोवर तालाब के बीच कनेक्शन है जो क्रमशः सत्तर पोखर तक जल भरा जाता था। आज सब चैनल बन्द हो रहा है जिससे इन तालाब में जल स्तर में कमी हो रहा है।छत्तीसगढ़ सरकार को इस पहलु पर ध्यान देना चाहिए।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक इस समय पितृ तर्पण चारों धाम की यात्रा पर गया जी में ही है।)