
•एआईएलयू की देश भर में आंदोलन की अपील
ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU) और मुंबई के अंधेरी न्यायालय के अधिवक्ताओं द्वारा मुंबई के सीजेएम न्यायालय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री बीआर गवई पर सर्वोच्च न्यायालय को कोर्ट रूम में परिसर में एक अधिवक्ता राकेश किशोर द्वारा हमले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। इस विरोध प्रदर्शन में 30 से अधिक अधिवक्ता उपस्थित थे। एड.चंद्रकांत बोजगर, एड.बलवंत पाटिल, एड.सुभाष गायकवाड़, एड.नंदा सिंह, एड.पीएम चौधरी, एड.सुल्तान शेख, एड.यादव आदि अधिवक्ताओं ने इस विरोध प्रदर्शन में भाषण दिए।


ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU), ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कक्ष में (कक्ष संख्या 1) भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), न्यायमूर्ति बी.आर. गवई पर 6 अक्टूबर, 2025 को “सनातन धर्म” के नाम पर जूता फेंकने की चौंकाने वाली घटना की कड़ी निंदा करते हुए देश भर के वकीलों और न्यायिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों और आम जनता से विरोध व्यक्त करने का अपील किया है। करती है।
8 सितंबर को संविधान पीठ द्वारा दिन के पहले मामले की सुनवाई शुरू करने के कुछ ही देर में एक 71 वर्षीय वरिष्ठ वकील, राकेश किशोर, जिसके पास सर्वोच्च न्यायालय परिसर में प्रवेश के लिए वकीलों और क्लर्कों को जारी किया गया कार्ड था, ने “भारत सनातन का अपमान सहन नहीं करेगा” जैसे नारे लगाते हुए न्याय पीठ की ओर जूता फेंका। सौभाग्य से, जूता पीठ तक नहीं पहुंचा। भारत के मुख्य न्यायाधीश गवई ने उल्लेखनीय संयम दिखाते हुए कहा, “ऐसी चीजों से प्रभावित होने वाला मैं आखिरी व्यक्ति हूं। कृपया जारी रखें,” जिससे कार्यवाही बिना रुकावट के फिर से शुरू हो गई। सुरक्षा कर्मचारियों ने वकील को हिरासत में लिया, जिसे बाद में रिहा कर दिया गया क्योंकि न्यायमूर्ति ने तत्काल कार्रवाई न करने का फैसला किया। हालांकि, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने राकेश किशोर का कानूनी प्रैक्टिस का लाइसेंस निलंबित कर दिया है, जिसमें व्यावसायिक आचरण के गंभीर उल्लंघन का उल्लेख है।
एआईएलयू का मानना है कि, यह निंदनीय कृत्य केवल एक व्यक्ति की विक्षिप्तता नहीं है, बल्कि इसे आरएसएस प्रायोजित दक्षिणपंथी विचारधारा के सांप्रदायिक तत्वों द्वारा न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक समीक्षा के अधिकार और भारतीय संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के मूलभूत सिद्धांतों को कमजोर करने के लिए सुनियोजित और द्वेषपूर्ण अभियान का हिस्सा मानकर देखा जाना आवश्यक है। यह सीजेआई गवई ने एक सुनवाई के दौरान कानूनी संदर्भ में हिंदू देवता विष्णु का रूपकात्मक उल्लेख किया था, जिसकी हिंदुत्ववादी शक्तियों ने हिंदू धर्म या सनातन धर्म के अपमान के रूप में गलत व्याख्या के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया है। सीजेआई गवई की दलित पृष्ठभूमि के कारण जातीय पूर्वाग्रह के तहत उन्हे निशाना बनाया जा रहा है।
वकीलों की अखिल भारतीय स्तर के संगठन ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन ने इसे “सर्वोच्च न्यायालय और स्वतंत्र न्यायपालिका पर स्पष्ट हमला” करार दिया है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)- CPI(M) ने इसे संविधान पर हमला बताया है। यह एक प्रकार का ब्राह्मणवादी आतंकवाद है और ऐसी जातिगत श्रेष्ठता पर आधारित द्वेष तथा धार्मिक उग्रवाद से न्यायिक व्यक्तियों की सुरक्षा की आवश्यकता है। हालांकि इस घटना में खुले न्यायालय में हमला होने के बावजूद कोई तत्काल मुकदमा दर्ज नहीं किया गया।
यह हमला राष्ट्र की विवेकशीलता के लिए चौंकाने वाला है। भारत के लिए खतरनाक “नाथूराम मानसिकता” केवल न्यायपालिका के लिए ही नहीं बल्कि हमारी लोकतांत्रिक संविधान की मूलभूत संरचना के लिए भी खतरा पैदा करती है। यह न्यायालय कक्ष में सुरक्षा के बारे में, धार्मिक और जातीय तनावों में न्यायिक निष्पक्षता के बारे में और धर्म से जुड़े कानूनों की समीक्षा में न्यायालयों की भूमिका की बदनामी के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने के व्यापक राजनीतिक प्रयासों के बारे में गंभीर सवाल उठाता है। एआईएलयू ने इस घटना की तत्काल, पूर्ण और निष्पक्ष जांच की मांग की है, जिसमें दोषी और उसके पीछे किसी भी उकसाने वाले या षड्यंत्रकारियों के खिलाफ तेज और कड़ी कानूनी कार्रवाई शामिल है। एआईएलयू संगठन द्वारा पूरे वकील वर्ग को एकजुट होकर, बार एसोसिएशनों को साथ लेकर और नागरिकों की भागीदारी के साथ निषेधात्मक आंदोलन करने का आवाहन अपने विरोध प्रदर्शनों में किया जा रहा है।
ऐसी घटनाएं फिर से ना दोहराई जाएं और हर वकील और नागरिक को विभाजनकारी शक्तियों से अपनी न्यायिक संस्थाओं की रक्षा करने के लिए इन प्रयासों में एकजुट होकर शामिल हो इसके लिए महाराष्ट्र में शांतिपूर्ण निषेध और रैलियां आयोजित करने, ऑनलाइन अभियान शुरू करने, सर्वोच्च न्यायालय और अन्य न्यायिक स्थानों पर ऐसी सांप्रदायिक और जातिवादी कृत्यों के विरोध में दंड और प्रणालीगत सुधारों के लिए याचिकाएं दाखिल करने और न्यायिक स्वतंत्रता तथा धर्मनिरपेक्षता के महत्व पर जानकारी देने के लिए तत्काल बैठकें और सभाएं आयोजित करने का नियोजन संगठन द्वारा किया जा रहा है।