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आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
रामनगरी अयोध्या में अनेक सिद्ध संत और महात्मा हुए हैं जो समय-समय पर अपने कर्म और त्याग के माध्यम से महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। इनमें एक साधारण सा नाम महंत सिया बिहारी दास “बाटी बाबा” का भी है ,जो मूलत दो सिद्धांतों को अपनाते हैं । पहला- “ राम के नाम को अखण्ड रूप में जपना” दूसरा – “आम जन को रोटी मुहैया कराना”। इसे पूरा करने के लिए उन्होंने सरयू तट के राजघाट क्षेत्र में “हनुमत किला” नामक एक मंदिर की स्थापना किया । आज के दिन पूरे अयोध्या क्षेत्र में अपनी अलग पहचान, अपनी सादगी और साधारण सात्विक विचार और सात्विक खान-पान से पूरा किया है।


पंचवटी प्राचीन श्री हनुमान किला की नई मुहिम
राम नगरी अयोध्या में हर मंदिर की अपनी अलग परंपरागत पहचान होती है। इस निर्जन इलाके में पंचवटी उद्यान की परिकल्पना पर्यावरण के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखती है। अयोध्या के मांझा कला, राजघाट एरिया में सरयू तट पर स्थित पंचवटी प्राचीन श्री हनुमान किला नामक मंदिर की कुछ अलग तरह की अनोखी परंपरा है। ये परम्परा 2009 से यहां चल रही है। इसके पूर्व सरयू के खुले रेती में भी महन्त जी द्वारा यही काम छोटे स्तर पर चल रहा था । इस मंदिर में भगवान को भोग लगाए जाने से लेकर भक्तोँ को बाटी चोखा का प्रसाद दिया जाता है। इस परंपरा की शुरुआत इस मंदिर के वर्तमान महंत सिया बिहारी दास ने किया है। वे “बाटी बाबा” के रूप में पूरे अवध क्षेत्र में विख्यात है। हर कोई उन्हें इसी नाम से जानता है। बाटी बाबा के पास कोई भी अतिथि आये, सबको बाटी चोखा का प्रसाद खिलाते हैं । बिना खाये किसी भी श्रद्धालु को वापस नहीं जाने देते हैं। इस आश्रम पर नियमित रूप से चालीस-पचास सन्त भंडारे का प्रसाद पाते हैं। मंगलवार को यहां विशेष भंडारे का आयोजन किया जाता है जिससे चार सौ से पांच सौ लोगों के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है। इसमें सन्त और आम श्रद्धालु सबको समलित कर लिया जाता है।
सरयू तट पर स्थित है हनुमान किला का मंदिर
अयोध्या में सरयू तट पर स्थित राजघाट क्षेत्र में हनुमान जी का मंदिर है। सरजू नदी के तट पर बने बंधे के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है। राम की पौड़ी से भी जाने का रास्ता है और गुप्तार घाट से भी आने का रास्ता है। अयोध्या शहर के मध्य में राजघाट के जैन मंदिर के बगल से भी आसानी से इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है। वहां पर प्रतिदिन बजरंगबली को बाटी और चोखा का भोग लगाया जाता है और प्रसाद के रूप में भक्तों को बाटी और चोखा दिया जाता है। जहां विगत कई वर्षों से इस मंदिर में ऐसी परंपरा शुरू हुई थी। प्रत्येक मंगलवार को विशेष आयोजन में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं को बाटी चोखा का प्रसाद खिलाया जाता है। प्रसाद को पंक्ति में भक्त घंटों बैठकर इंतजार भी करते हैं। कभी-कभी व्यवस्था होने पर खीर भी मुहैया कराई जाती है। इसका समय अपरान्ह 1:00 बजे अपरान्ह से 3:00 तक होता है।
बजरंगबली को भोग के बाद भक्तों को मिलता है प्रसाद
हनुमान मंदिर के महंत जी को भी “बाटी बाबा” के नाम से जाना जाता है। बाटी बाबा बताते हैं कि यह परंपरा अयोध्या के लिए बहुत ही सात्विक है ,क्योंकि बाटी चोखा के इस प्रसाद में लहसुन प्याज का भी प्रयोग नहीं किया जाता है। उन्होंने बताया कि पहले हम बालू के घाटों पर रहे और जो भी भक्त आते थे, हम उनको बाटी और चोखा खिलाते थे । धीरे- धीरे समय बीतता गया । श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई। अब इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पूरे अवध क्षेत्र में सबके सामने है।
भगवान के आशीर्वाद से शुरू हुई बाटी चोखे की परंपरा
महंत सिया राम दास ने बताया कि बाटी चोखे के प्रोग्राम में कई वर्षों से लगातार आते रहे हैं। इसमें बजरंग बली बाबा का पूर्ण आशीर्वाद है। ऐसे स्थान पर है सरयू तट पर उनकी कृपा हुई और महाराज जी द्वारा यहां पर बाटी चोखे का प्रावधान शुरू किया गया है। भगवान बजरंगबली को भाटी चोखे का भोग लगता है । सभी भक्त लोग प्रसाद के रूप में इसे बड़े आनन्द के साथ ग्रहण करते हैं । वे ये भंडारा नियमित करते रहते हैं। कभी-कभी कोई- कोई भक्त भी इस आयोजन का हिस्सेदार बन जाता है । व्यवस्था होने पर खीर भी प्रसादी में बांटा जाता है। कैसे बाटी चोखा तैयार होता है कैसे भोग लगाया जाता है यह सब प्रभु की कृपा है। महाराज जी के ऊपर हनुमान जी का विशेष रूप से आशीर्वाद है। यह बहुत ही रमणीक और आनन्ददायक स्थल है। यहां आकर मन को गहन शांति का अनुभव होता है। राज्य सरकार ने यहां पक्के घाट छतरियां और पत्थर का प्लेटफार्म बना कर इस स्थान को और दिव्य बना दिया है। मन्दिर के सामने चौबीसों घंटे अनवरत सीताराम नाम की धुनि होती रहती है जो ध्वनि विस्तारक यंत्र द्वारा काफी दूर से ही सुना जा सकता है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
