
संत कबीर नगर। शासन के निर्देशानुसार 25 जून 2025 को विकास भवन के डीपीआरसी हॉल में आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ को “काला दिवस” के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर मेहदावल विधानसभा क्षेत्र के यशस्वी विधायक अनिल त्रिपाठी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में आपातकाल के काले अध्याय को याद करते हुए लोकतंत्र की महत्ता पर प्रकाश डाला गया।

माननीय विधायक मेहदावल अनिल त्रिपाठी द्वारा अपने संबोधन में बताया गया कि इतिहास में 25 जून 1975 को लागू की गई इमरजेंसी एक काले अध्याय के रूप में मानी जाती है। तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत नेशनल इमरजेंसी लगाकर लोगों के मौलिक अधिकार सस्पेंड कर दिए थे। स्वतंत्रता को रोक दिया गया था और लोगों की जबरन सामूहिक तौर पर नसबंदी तक करवाई गई थी। इतना ही नहीं सरकार ने मेंटिनेस आफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मिशा कानून के तहत सभी विपक्षी दल के नेताओं को जेल में डाल दिया था। जिसमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज , मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह जैसे बड़े दिग्गज नेता शामिल रहे।
बताया कि सरकार ने मीडिया पर सेंसरशिप लागू करदी थी। प्रेस कार्यालयों पर इमेडिएटर बैठा दिया गया था, जिसकी इजाजत के बाद ही कोई समाचार पत्र छाप सकता था और सरकार विरोधी खबर छपने पर गिरफ्तारी हो सकती थी। कई पत्रकारों को मिशा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) और डीआईआर (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। सरकार की कोशिश थी कि लोगों तक सही जानकारी पहुंचने ना पाए।
बताया कि अत्याचार की इंतहा इस कदर बढ़ गई की आरएसएस समेत 24 संगठनों पर बैन लगा दिया गया था और तो और इमरजेंसी का समर्थन न करने वाले कलाकारों को ऑल इंडिया रेडियो से काम मिलना बंद हो गया। जिसमें किशोर कुमार जैसे संगीतकारों को भी जेल में डाल दिया गया था।
कहा कि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इमरजेंसी लागू करने के पीछे इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का बहुत बड़ा रोल रहा। इंदिरा गांधी संजय गांधी के कहने पर ही सारे फैसले करती थी। वास्तव में देखा जाए तो भारतीय लोकतंत्र में कांग्रेस पार्टी इमरजेंसी के कलंक से कभी मुक्त नहीं हो सकती है।
हालांकि इंदिरा गांधी सरकार ने विपक्षी दलों द्वारा किए जा रहे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के कारण देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होने का बहाना बनाते हुए इमरजेंसी लगाई थी लेकिन इमरजेंसी ध्यान करें तो हम पाएंगे कि तत्कालीन सरकार ने इमरजेंसी की घोषणा अपने व्यक्तिगत लाभ हेतु और स्वार्थ के चलते की थी।
दरअसल 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को करारी शिकस्त दी लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनाव में सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर हाई कोर्ट में पिटीशन दाखिल कर दिया। 12 जून 1975 जिसमें हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिंह ने इंदिरा गांधी को दोषी करार दिया। न्यायालय ने उनके निर्वाचन को अवैध घोषित कर 6 साल के लिए उनको कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया था। इसके बाद इंदिरा गांधी के पास प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बचा। तब इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। वहां पर भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बिहार कृष्णा अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को केवल प्रधानमंत्री बने रहने की इजाजत दी और आखिरी फैसला आने तक उन्हें संसद के तौर पर मिलने वाले विशेष अधिकार और वोट डालने के अधिकार पर रोक लगा दी। इस फैसले ने उनके राजनीतिक भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।
वहीं इमरजेंसी लगाने का एक दूसरा बड़ा कारण यह भी था कि जय प्रकाश नारायण कांग्रेस के खिलाफ लगातार आंदोलन पर आंदोलन करते जा रहे थे जो काफी तेजी से बढ़ रहा था। जेपी ने नैतिक तौर पर इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटाने का हवाला देकर स्टूडेंट सैनिकों और पुलिस से सरकार के आदेश न मानने का आग्रह किया। उन्होंने 25 जून 1974 दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में इंदिरा गांधी से इस्तीफा की मांग की। इस रैली में दिनकर की काव्य पंक्ति सिंहासन खाली करो के तारों को गंभीरता से लेते हुए इंदिरा गांधी काफी नाराज हो गई ।उन्होंने बिना कैबिनेट की मीटिंग किए एक निरंकुश शासन की तरह व्यवहार करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लगाने की सिफारिश कर दी। जिस पर राष्ट्रपति ने 25 और 26 जून की मध्य रात्रि को ही साइन कर दी। इसके बाद पूरे देश में इमरजेंसी लागू हो गई जो। 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगभग जनता ने पहली गैर कांग्रेसी सरकार को चुनकर इमरजेंसी के दौरान हुए सभी फिल्मों का हिसाब ले लिया। जनता ने कांग्रेस को हराकर सत्ता की चाबी जनता पार्टी के हाथों में सौप दी, तब कांग्रेस से ही अलग हुए 81 साल के मोरारजी देसाई देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने यानि आजादी के 30 साल बाद पहली गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में कांग्रेस के लिए हालात इस कदर खराब हुई कि इंदिरा गांधी खुद रायबरेली की सीट हार गई और कांग्रेस मात्र 153 सीटों पर सिमट कर रह गई थी।
इस तरह भारतीय इतिहास में घटी इस घटना ने यह साबित कर दिया कि भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करना आसान नहीं है। जनता की ताकत हमेशा सबसे ऊपर होती है यदि गहराई से देखा जाए तो इमरजेंसी के उस कड़वे अनुभव से भारतीय लोकतंत्र को एक नई दिशा मिली और एक सशक्त भारत की नींव रखी।
माननीय विधायक अनिल त्रिपाठी ने बताया कि आज हम सभी लोग 25 जून 2025 को उसे आपातकाल के दिन को काला दिवस के रूप में मना रहे हैं।
इस अवसर पर सदर विधायक अंकुर राज तिवारी के प्रतिनिधि उमेश तिवारी, मुख्य विकास अधिकारी पी पी त्रिपाठी जिला पंचायत राज अधिकारी, जिला सूचना अधिकारी सुरेश कुमार सरोज समेत जनपद के सभी गणमान्य एवं ग्रामीण क्षेत्र से दुर दराज से आई हुई महिलाएं उपस्थित रही