–लाखों श्रद्धालुओं ने पावन सलिला सरयू में लगाई डुबकी, रामलला का किया दर्शन।
अयोध्या। बुधवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन पावन सलिला सरयू में लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई और प्रभु श्रीराम और सरयू सलिला का स्मरण कर पुण्य लाभ अर्जित किया। स्नान ध्यान के बाद प्रभु श्रीराम दर्शन के साथ अयोध्या का पौराणिक कार्तिक मेला सकुशल सम्पन्न हो गया। रामनगरी अयोध्या में जय श्री राम के जयकारे गूंजते रहे। धर्मपथ, रामपथ, सरयू तट, राम पैड़ी, नया घाट सहित अयोध्या की सभी सड़के श्रद्धालुओं से भरी पड़ी रही।
जिला प्रशासन नया घाट स्थित नियंत्रण कक्ष से तकनीक के सहारे सभी गतिविधियों पर नजर रखें था। रामनगरी अयोध्या में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू में स्नान का विशेष महत्व है और इसी के साथ कार्तिक मेला का समापन हो जाता है। देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आयोजित अयोध्या की चौदह कोसी परिक्रमा, पांच कोसी परिक्रमा और पूर्णिमा स्नान दान के लिए अयोध्या आते हैं।
इस बार भी चौदह कोसी परिक्रमा और पांच कोसी परिक्रमा में पचास लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने रामनगरी की पौराणिक परिक्रमा की और आज श्रद्धालुओं की अधिक संख्या से जिला प्रशासन भी हल्कान रहा। अयोध्या को जोड़ने वाले सभी मार्गों पर यातायात प्रतिबंधित था फिर भी अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या प्रशासनिक अनुमान से कहीं अधिक रही।
श्रीराम मंदिर एवं हनुमान गढ़ी पर आज दर्शन पूजन अर्चन करने वाले श्रद्धालुओं की अधिक संख्या होने के कारण अधिक आयु के श्रद्धालु प्रवेश द्वार पर ही हनुमंत लला का पांव छू कर पुण्य लाभ अर्जित किए। सरयू के सभी घाटों पर स्नान करने वालों का तांता लगा रहा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व पर सरयू नदी में पवित्र डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु मंगलवार रात से ही रामनगरी में डेरा डाले हुए थे। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर की रात्रि 10ः56 बजे से शुरू हुई और 5 नवंबर (बुधवार) को शाम 6ः48 बजे तक रही जिसके कारण ब्रह्म मुहूर्त से ही घाटों पर स्नान का सिलसिला शुरू हो गया।
माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और यह तिथि स्नान, व्रत एवं दान की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी दिन भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार लिया था और भगवान शिव ने त्रिपुरासुर असुर का संहार किया था। कार्तिक पूर्णिमा का यह स्नान कार्तिक मेले का प्रमुख और अंतिम पर्व होता है, जिसकी पूर्णाहुति के साथ ही महीने भर से चल रहे कल्पवास अनुष्ठान का भी समापन हो जाता है।
