
- डीएम के अनुमोदन से हुआ सचिवों, एपीओ मनरेगा, ब्लॉक टीए और तकनीकी सहायकों का स्थानांतरण।
- आखिर डीएम के बजाय सीडीओ के अनुमोदन के बाद क्यों जारी हुआ एडीओ पंचायत नाथनगर के स्थानांतरण का आदेश?
रिपोर्ट : केके मिश्रा संवाददाता।
संत कबीर नगर। जिले में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की पारदर्शिता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच जिलाधिकारी द्वारा शुरू की गई सख्ती से विकास भवन के अधिकारी असहज नजर आ रहे हैं। हाल ही में डीएम के अनुमोदन से ग्राम विकास अधिकारियों (सचिव), एपीओ मनरेगा, तकनीकी सहायकों और ब्लॉक टीए का बड़े पैमाने पर स्थानांतरण किया गया है। लेकिन एडीओ पंचायत, नाथनगर का तबादला डीएम की बजाय मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) के अनुमोदन से किया गया, जिससे प्रशासनिक प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं।
सूत्रों की मानें तो मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में प्रयासरत जिलाधिकारी को विकास भवन के अधिकारी ही गुमराह कर रहे हैं। हालांकि कागजों पर डीएम मनरेगा के पदेन जिला समन्वयक हैं, लेकिन वास्तविक नियंत्रण विकास भवन और विशेषकर सीडीओ के हाथों में है।
जानकारी के अनुसार, मनरेगा में बरती जा रही अनियमितताओं को लेकर जब डीएम तक शिकायतें पहुंचीं, तो उन्होंने विकास भवन में कार्यरत अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का संकेत दिया। यही नहीं, एक ब्लॉक में रसूखदार अधिकारी द्वारा किए गए निरीक्षण में भी गंभीर खामियां मिलीं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। बताया जाता है कि निरीक्षण के दौरान मस्टररोल पर दर्ज मजदूर मौके पर नहीं मिले और न ही कोई कार्यस्थल पर काम चल रहा था।
चौंकाने वाली बात यह है कि जिलास्तरीय मनरेगा अधिकारियों ने आज तक उस चर्चित ब्लॉक की गंभीरता से मॉनिटरिंग तक नहीं की है। सूत्रों का दावा है कि वहां के बीडीओ से ‘डील’ होने के कारण अधिकारी कार्रवाई से कतरा रहे हैं।
डीएम द्वारा भ्रष्टाचार की बू सूंघने के बाद जब कार्यवाही की बारी आई तो विकास भवन के कथित ‘ईमानदार’ अधिकारी ने तुरंत सचिवों, एपीओ, टीए और ब्लॉक टीए का तबादला कर दिया। इस तबादले का उद्देश्य संभवतः यह दिखाना था कि नीचे के कर्मचारियों को बदलकर ही सुधार संभव है, जबकि बीडीओ और अकाउंटेंट जैसे पदों पर बैठे असली ‘खिलाड़ी’ अब भी कुर्सी पर जमे हुए हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि जब तक मनरेगा से ‘नजराना संस्कृति’ खत्म नहीं की जाएगी, और जब तक जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक यह सिस्टम शासन की महत्त्वाकांक्षी योजना को खोखला करता रहेगा।