
रविंद्र भवन रिसड़ा कोलकाता में भोजपुरी का भाषा वैज्ञानिक सन्दर्भ और आठवीं अनुसूची विषयक व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन परिव्यक्त करते हुए ग्रंथकार डॉ विद्यासागर उपाध्याय ने कहा कि भोजपुरी को केवल एक बोली के रूप में सीमित समझने वाले उसके भाषा वैज्ञानिक सन्दर्भ से पूर्णतः अनभिज्ञ हैं।
लोक में सर्वप्रथम भाषा का अपरिमार्जित रूप ही प्रचलन में होता है लेकिन जैसे जैसे उसका परिमार्जन होता है वह मानक स्वरूप में ढलती जाती है।भोजपुरी से बहुत कम बोली जाने वाली भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो चुकी हैं लेकिन संपूर्ण विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा बोली जाने वाली भोजपुरी आज तक भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त नहीं कर पाई।
इसका दुष्परिणाम भारतीय और राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा देने वाले छात्रों को भुगतना पड़ता है।यही नहीं भोजपुरी के अपेक्षा कम बोली जाने वाली भाषाओं का साहित्य एकेडमी स्थापित तो होता गया लेकिन भोजपुरी के लिए आज ऐसा होना कठिन है।
भोजपुरी सिनेमा आज आकाश चूम रहा है लेकिन आए दिन एक साजिश के तहत भोजपुरी की शब्द संपदा को कमतर बताकर उसे हाशिए पर धकेलने का प्रयास किया जाता है। ऐसे में दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
उक्त कार्यक्रम में महेश प्रसाद शून्य की पुस्तक ईश्वर के एहसास भइल, प्रकाश कुमार त्रिपाठी की पुस्तक स्त्री विमर्श और आज का संदर्भ, प्रिया पाण्डेय रौशनी की पुस्तक अभव्या एक रौशनी,रामानुज द्विवेदी की पुस्तक संझा पराती और डॉ आनंद कुमार की पुस्तक पैराडाइज्म शिफ्ट इन लिटरेचर सहित कुल पांच पुस्तकों का विमोचन द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ विद्यासागर उपाध्याय,मुख्य अतिथि डॉ विमलेश त्रिपाठी और अध्यक्ष डॉ गुरुचरण सिंह तथा संबंधित लेखकों के करकमलों से संपन्न हुआ।
व्याख्यान के उपरांत आयोजक श्री प्रकाश प्रियांशु और अन्य विद्वतजन द्वारा डॉ विद्यासागर उपाध्याय को भोजपुरी भाषा साहित्य संस्कृति में अतुलनीय योगदान और दर्शन के उत्कृष्ट ग्रन्थ आदि शंकराचार्य विराट व्यक्तित्व एवं अद्वैत दर्शन जैसी कृति के वैशिष्ट्य पर ‘साहित्य श्री सम्मान 2024’ से अलंकृत किया गया।अध्यक्षता साहित्यकार डॉ गुरुचरण सिंह संचालन श्री प्रकाश प्रियांशु ने किया।