आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
विचार मंथन: उत्तर प्रदेश के पावन सप्त पुरी अयोध्या के पास का भरतकुंड में भगवान राम के भाई भरत की तपोभूमि रही है। मान्यता है कि भगवान राम के वनवास के दौरान भरतजी ने उनकी खड़ाऊं रख कर यहीं 14 वर्ष तक तप किया था। इसी के पास स्थित गया कुण्ड/ गया बेदी में त्रेता युग में भगवान राम ने अपने स्वर्गीय पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। पितृपक्ष में यह स्थल मिनी गया कहलाता है यहां पिंडदान गया के समान फलदायी होती है। आज भी यहां श्राद्ध करने का महत्व है और दूर-दूर से लोग अपनों को तारने आते हैं।
अयोध्या से करीब 16 किलोमीटर दूर नंदीग्राम में भगवान राम के अनुज भरत की तपोभूमि भरतकुंड है तो दूसरी ओर यही वह स्थल भी है, जहां वनवास से लौटने के बाद भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था इसीलिए पितृपक्ष में पूरे देश से यहां श्रद्धालु आते हैं।
यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु के दाहिने पैर का चिह्न भरतकुंड स्थित गया वेदी पर है तो बाएं पांव का गया जी में स्थित है। इसीलिए भरतकुंड में पिंडदान गया तीर्थ के समान फलदायी माना गया है।
सत्ताईस कूपों के जल वाला कूप
भगवान के राज्याभिषेक के लिए भरत जी 27 तीर्थों का जल लेकर आए थे, जिसे आधा चित्रकूट के एक कुएं में डाला था तथा शेष भरतकुंड स्थित कूप में। यहां शास्त्रीय सम्मत विधि से पिण्ड तर्पण करने के उपरान्त इसी कुण्ड तर्पण सामग्री का विसर्जन किया जाता है।
शताब्दियों पुराना वट वृक्ष
भरतकुंड में यह कुआं आज भी है। कूप के निकट ही शताब्दियों पुराना वट वृक्ष भी है। कूप का जल और वट वृक्ष की छाया लोगों को न सिर्फ सुखद प्रतीत होती है, बल्कि असीम शांति से भी भर देती है।
त्रेता में भगवान राम के पिता का श्राद्ध करने के बाद स्थापित हुई परंपरा का सदियों बाद भी श्रद्धालु पालन कर रहे हैं। पितृपक्ष में पूरे देश से लोग अपनों को तारने के लिए एकत्र होते हैं। जिन लोगों को गया में भी श्राद्ध करना होता है वे भी पहले ही यहां आते हैं।
लेखक परिचय:- लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक इस समय पितृ तर्पण चारों धाम की यात्रा पर है।
