
बस्ती। सीता और श्रीराम का विवाह, भक्त और भगवान के मिलन का अद्वितीय उदाहरण है। गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में इस प्रसंग का अत्यंत सुंदर और भावपूर्ण चित्रण किया गया है। यह विवाह प्रसंग रामायण की एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि स्वयं प्रकृति के नियंता श्रीराम को पूर्व से ज्ञात था कि जीवन में उन्हें चौदह वर्षों का वनवास और रावण जैसे अहंकारी असुर से संघर्ष करना होगा। ऐसे कठिन समय से पूर्व यह विवाह धैर्य और संकल्प का प्रतीक बन जाता है।
यह विचार स्वामी रामेश्वर नारायण जी महाराज ने नगर बाजार स्थित श्री हनुमानगढ़ी मंदिर परिसर में आयोजित 9 दिवसीय श्रीराम कथा के दौरान व्यक्त किए। यह आयोजन मंदिर के जीर्णोद्धार एवं मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में किया गया था।
कथा के दौरान उन्होंने कहा कि जीवन में सद्गुणों से ही मधुरता आती है, और जिसके जीवन में मधुरता नहीं, वह ईश्वर को प्रिय नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी बताया कि महादान और द्रव्यदान से बढ़कर मानदान श्रेष्ठ होता है।
विश्वामित्र के गुणों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि “विश्व का मित्र ही विश्वामित्र होता है। जो जगत का मित्र बनता है, उसके पीछे-पीछे स्वयं राम और लक्ष्मण चल पड़ते हैं।” उन्होंने कहा, “जब कोई जीव मेरे दर्शन के लिए आता है, तो मैं स्वयं खड़ा होकर उसे दर्शन देता हूँ। ईश्वर की दृष्टि तो सदैव जीव की ओर होती है, परंतु जीव ही ईश्वर की ओर दृष्टि नहीं करता।”
मुख्य यजमान के रूप में शेषमणि गुप्ता, शकुंतला देवी, चिरौजी गुप्ता एवं मंजू देवी ने विधिपूर्वक पूजन किया।
इस अवसर पर नगर पंचायत अध्यक्ष नीलम सिंह राना, राना दिनेश प्रताप सिंह, विष्णु कसौधन, संजय गुप्ता, रामधनी कसौधन, शिवम, प्रिंस, रमेश कसौधन, चंदन गुप्ता, राजू गौड़, आशीष सिंह, श्रुति अग्रहरि, दुर्गेश, दिलीप, अरविंद कुमार, नरेंद्र पांडेय, रत्नेश्वर सिंह, विजय श्रीवास्तव, रंजीत सिंह, श्रवण कसौधन, सुनील श्रीवास्तव, रीना कसौधन, माधुरी, पम्पी कसौधन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।